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अध्याय अठारह

“वह इनके मतलब के बारे में गहराई से सोचने लगी”

“वह इनके मतलब के बारे में गहराई से सोचने लगी”

1, 2. मरियम कहाँ जा रही थी और यह सफर उसके लिए क्यों मुश्‍किल रहा होगा?

मरियम अपने पति यूसुफ के साथ दूर बेतलेहेम जा रही है। वह एक गधे पर बैठी है और सामने यूसुफ गधे की लगाम खींचता हुआ धीरे-धीरे चल रहा है। मरियम के लिए यह सफर आसान नहीं है। वह गर्भवती है, इसलिए जानवर पर घंटों से सफर करते उसे काफी मुश्‍किल हो रही है। रास्ते में वह एक बार फिर वह अपने गर्भ में पल रहे बच्चे की हरकत महसूस करती है।

2 बाइबल बताती है कि मरियम “इस वक्‍त पूरे दिनों पेट से” है। (लूका 2:5) सफर के दौरान यूसुफ और मरियम खेतों-खलिहानों के पास से गुज़रते हैं। उन्हें देखकर खेतों में जुताई-बोआई करनेवाले किसानों ने शायद सोचा होगा कि इस हालत में यह औरत क्यों सफर कर रही है। आखिर मरियम क्यों इतने लंबे सफर पर निकली थी?

3. (क) मरियम को कौन-सी ज़िम्मेदारी मिली थी? (ख) हम उसके बारे में क्या सीखेंगे?

3 दरअसल कई महीने पहले मरियम को परमेश्‍वर की तरफ से एक ऐसी ज़िम्मेदारी मिली थी, जो पूरे इतिहास में सबसे अनोखी थी। इस जवान यहूदी लड़की से कहा गया था कि वह एक बेटे को जन्म देगी, जो आगे चलकर मसीहा बनेगा और परमेश्‍वर का बेटा कहलाएगा। (लूका 1:35) जब मरियम के बच्चे जनने का वक्‍त करीब आया तो इस सफर पर निकलने की ज़रूरत आ पड़ी। इस दौरान उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा जिससे उसके विश्‍वास की परख हुई। आइए देखें कि उसने किस तरह अपने विश्‍वास को मज़बूत रखा।

बेतलेहेम तक का सफर

4, 5. (क) यूसुफ और मरियम बेतलेहेम क्यों जा रहे थे? (ख) सम्राट के फरमान जारी करने से कौन-सी भविष्यवाणी पूरी हुई?

4 यूसुफ और मरियम के अलावा और भी कई लोग एक जगह से दूसरी जगह जा रहे थे। सम्राट औगुस्तुस ने हाल ही में यह फरमान जारी किया था कि सब लोग नाम लिखवाने के लिए अपने-अपने शहर जाएँ जहाँ वे पैदा हुए थे। यूसुफ ने क्या किया? बाइबल बताती है, “यूसुफ गलील के नासरत शहर में रहता था। वह दाविद के खानदान और उसके वंश का था। इसलिए वह भी यहूदिया में दाविद के शहर गया जो बेतलेहेम कहलाता है।”​—लूका 2:1-4.

5 सम्राट का इस वक्‍त यह फरमान जारी करना कोई इत्तफाक नहीं था। करीब 700 साल पहले भविष्यवाणी की गयी थी कि मसीहा बेतलेहेम में पैदा होगा। नासरत से सिर्फ 11 किलोमीटर दूर बेतलेहेम नाम का एक शहर था। लेकिन भविष्यवाणी में साफ बताया गया था कि मसीहा “बेतलेहेम एप्राता” नाम के एक छोटे-से शहर में पैदा होगा। (मीका 5:2 पढ़िए।) नासरत से उस बेतलेहेम तक पहुँचने के लिए मुसाफिरों को सामरिया से होते हुए करीब 130 किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता तय करना पड़ता। यूसुफ को उसी बेतलेहेम में जाकर अपना नाम लिखवाना था, क्योंकि वह और उसकी पत्नी राजा दाविद के वंश से थे, जो उसी शहर का रहनेवाला था।

6, 7. (क) बेतलेहेम जाना मरियम के लिए क्यों मुश्‍किल था? (ख) यूसुफ की पत्नी होने की वजह से मरियम के फैसलों पर क्या फर्क पड़ा? (फुटनोट भी देखें।)

6 क्या मरियम ने यूसुफ के फैसले का साथ दिया? देखा जाए तो मरियम के पास न जाने की कई वजह थीं। एक तो यह सफर उसके लिए भारी पड़ सकता था। गरमी का मौसम लगभग खत्म हो चुका था और पतझड़ शुरू हो गया था, इसलिए हलकी बारिश होने की सँभावना थी। और-तो-और, बेतलेहेम 2,500 फुट से भी ज़्यादा की ऊँचाई पर बसा था जहाँ तक पहुँचने के लिए कई दिन चलना पड़ता और आखिरी चढ़ाई बहुत ही मुश्‍किल होती। मरियम के लिए यह सफर और भी लंबा होता, क्योंकि इस नाज़ुक हालत में उसे बीच-बीच में आराम करने के लिए रुकना पड़ता। इसके अलावा, उसकी प्रसव-पीड़ा कभी-भी शुरू हो सकती थी और ऐसे वक्‍त में हर औरत अपने परिवार और सहेलियों के पास रहना चाहती है ताकि वे उसकी मदद कर सकें। इसमें कोई शक नहीं कि इस सफर पर जाने के लिए मरियम को बहुत हिम्मत की ज़रूरत थी।

बेतलेहेम तक का सफर आसान नहीं था

7 फिर भी जैसे लूका बताता है, यूसुफ ‘मरियम के साथ नाम लिखवाने’ गया। लूका यह भी बताता है कि मरियम “अब [यूसुफ की] पत्नी बन चुकी थी।” (लूका 2:4, 5) इससे मरियम के फैसलों पर बहुत फर्क पड़ा। एक पत्नी के नाते वह यूसुफ को अपने परिवार का मुखिया मानती थी और जानती थी कि परमेश्‍वर ने पत्नी को पति का सहायक बनाया है। इसलिए उसने यूसुफ के फैसलों का साथ देकर एक पत्नी की ज़िम्मेदारी बखूबी निभायी। * हालाँकि बेतलेहेम जाना मरियम के लिए मुश्‍किल था, फिर भी यूसुफ की बात मानकर उसने अपने विश्‍वास का सबूत दिया।

8. (क) बेतलेहेम जाने के लिए और किस बात ने मरियम को उभारा होगा? (ख) मरियम से वफादार लोगों को क्या प्रेरणा मिलती है?

8 बेतलेहेम जाने के लिए और किस बात ने मरियम को उभारा होगा? क्या वह इस भविष्यवाणी के बारे में जानती थी कि मसीहा बेतलेहेम में पैदा होगा? इस बारे में बाइबल कुछ नहीं बताती। लेकिन शायद उसे मालूम था क्योंकि उस ज़माने के धर्म गुरु और आम लोग भी उस भविष्यवाणी से वाकिफ थे। (मत्ती 2:1-7; यूह. 7:40-42) और जैसे कि हम जानते हैं, मरियम को शास्त्र का अच्छा ज्ञान था। (लूका 1:46-55) मरियम के बेतलेहेम जाने की वजह चाहे पति का फैसला हो, सरकारी हुक्म, यहोवा की भविष्यवाणी या ये तीनों वजह हों, लेकिन एक बात तय है कि उसने आज्ञा मानने में एक बेहतरीन मिसाल रखी। यहोवा ऐसे लोगों को अनमोल समझता है जो नम्रता से उसकी आज्ञा मानते हैं। आज भले ही अधीन रहने का कोई मोल नहीं रह गया है, लेकिन मरियम की मिसाल से सभी वफादार लोगों को क्या ही ज़बरदस्त प्रेरणा मिलती है।

यीशु का जन्म

9, 10. (क) बेतलेहेम के नज़दीक पहुँचते वक्‍त मरियम और यूसुफ किस बारे में सोचने लगे होंगे? (ख) उन्हें कहाँ रुकना पड़ा और क्यों?

9 आखिरकार जब मरियम को दूर से बेतलेहेम की एक झलक मिली तो उसने राहत की साँस ली होगी। पहाड़ियों पर चढ़ते हुए यूसुफ और मरियम जैतून के कई बागों से गुज़रे। जैतून साल की आखिरी फसलों में से एक थी। उस दौरान उन्होंने बेतलेहेम के इतिहास के बारे में ज़रूर सोचा होगा। यह शहर इतना छोटा था कि इसे यहूदा के शहरों में नहीं गिना जाता था, ठीक जैसे मीका भविष्यवक्‍ता ने कहा था। फिर भी इसी शहर में हज़ारों साल पहले बोअज़, नाओमी और दाविद पैदा हुए थे।

10 जब मरियम और यूसुफ बेतलेहेम पहुँचे तो उन्होंने देखा कि वहाँ पाँव रखने की भी जगह नहीं है। नाम लिखवाने के लिए कई लोग उनसे पहले पहुँच चुके थे, इसलिए उन्हें सराय में कोई जगह नहीं मिली। * एक पशुशाला में रात गुज़ारने के अलावा उनके पास और कोई उपाय नहीं था। और यहीं पशुशाला में मरियम की प्रसव-पीड़ा शुरू हो गयी। उसे ज़बरदस्त दर्द उठा और उसका दर्द बढ़ता ही गया। कल्पना कीजिए, मरियम को तड़पता देखकर यूसुफ की चिंता कितनी बढ़ गयी होगी!

11. (क) दुनिया की हर माँ मरियम का दर्द क्यों समझ सकती है? (ख) किन मायनों में यीशु “पहलौठा” था?

11 दुनिया की हर माँ मरियम का दर्द समझ सकती है। मरियम के ज़माने से करीब 4,000 साल पहले यहोवा ने भविष्यवाणी की थी कि आदम से मिले पाप की वजह से हर औरत को बच्चा जनते वक्‍त भयंकर पीड़ा होगी। (उत्प. 3:16) मरियम को भी यह पीड़ा सहनी पड़ी होगी। मगर लूका इस बारे में कुछ नहीं बताता, बस इतना कहता है कि “उसे बेटा हुआ, जो उसका पहलौठा था।” (लूका 2:7) जी हाँ, उसका “पहलौठा” बच्चा पैदा हुआ। आगे चलकर उसके कम-से-कम छः और बच्चे हुए। (मर. 6:3) लेकिन उसका यह पहला बच्चा सबसे खास होता। वह न सिर्फ मरियम  का पहलौठा था बल्कि यहोवा की “सारी सृष्टि में पहलौठा” था। वह परमेश्‍वर का इकलौता बेटा था!​—कुलु. 1:15.

12. (क) मरियम ने बच्चे को कहाँ रखा? (ख) नाटकों, तसवीरों और झाँकियों में जो दिखाया जाता है वह कैसे हकीकत से अलग है?

12 इसके बाद लूका ने एक ऐसी बात बतायी जो बहुत जानी-मानी है, “मरियम ने बच्चे को कपड़े की पट्टियों में लपेटकर एक चरनी में रखा।” (लूका 2:7) दुनिया के कई देशों में नाटकों, तसवीरों और झाँकियों में दिखाया जाता है कि वह पशुशाला बहुत ही बढ़िया और शानदार थी। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं था। जैसा कि हम जानते हैं, पशुशाला गंदी और बदबूदार जगह होती है। इसके अलावा, यीशु को एक चरनी में रखा गया था जिसमें जानवरों को चारा दिया जाता है। ज़रा सोचिए, अगर यूसुफ और मरियम को कोई और जगह मिलती तो क्या वे बच्चे को जन्म देने के लिए यह जगह चुनते? हरगिज़ नहीं। सभी माँ-बाप अपने बच्चों के लिए हमेशा अच्छा चाहते हैं। यही बात मरियम और यूसुफ के बारे में भी सच थी। आखिर उनके यहाँ परमेश्‍वर का बेटा जन्म लेनेवाला था!

13. (क) मरियम और यूसुफ ने कैसे अपना भरसक किया? (ख) यूसुफ और मरियम की तरह समझदार माता-पिता अपने बच्चों को किन बातों को अहमियत देना सिखाते हैं?

13 फिर भी उन्होंने अपनी मजबूरियों का रोना नहीं रोया। उन्होंने बच्चे के लिए अपनी तरफ से जितना बन पड़ता था वह सब किया। मिसाल के लिए, मरियम ने उसे कपड़े की पट्टियों में लपेटा और फिर उसे ध्यान से चरनी में सुलाया ताकि वह सुरक्षित और गरम रहे। हालाँकि पशुशाला में उसे कई परेशानियाँ झेलनी पड़ीं, फिर भी इन बातों पर ध्यान देने के बजाय उसने अपना पूरा ध्यान बच्चे की देखभाल करने में लगाया। वह और यूसुफ जानते थे कि अपने बच्चे को ऐशो-आराम की चीज़ें देने से ज़्यादा ज़रूरी है, उसमें परमेश्‍वर के लिए प्यार बढ़ाना। (व्यवस्थाविवरण 6:6-8 पढ़िए।) आज इस दुनिया में जहाँ यहोवा की सेवा को कोई अहमियत नहीं दी जाती, समझदार माता-पिता यूसुफ और मरियम की तरह अपने बच्चों को सिखाते हैं कि वे परमेश्‍वर की सेवा को सबसे ज़्यादा अहमियत दें।

चरवाहों से मिला हौसला

14, 15. (क) चरवाहे बच्चे को देखने के लिए क्यों बेताब थे? (ख) इसके बाद उन्होंने क्या किया?

14 कल्पना कीजिए, पशुशाला में अचानक कुछ लोगों के आने से काफी चहल-पहल होने लगती है। ये दरअसल चरवाहे हैं जो यूसुफ और मरियम से मिलने आए हैं और खासकर बच्चे को देखने के लिए बेताब हैं। उनके मन उमंग से भरे और चेहरे खुशी से खिले हुए हैं। वे पहाड़ियों से जल्दी-जल्दी आए थे जहाँ वे अपने झुंडों की रखवाली कर रहे थे। * उन्हें देखकर यूसुफ और मरियम हैरत में हैं। चरवाहे उन्हें बताते हैं कि अभी-अभी उनके साथ एक हैरतअंगेज़ घटना घटी। आधी रात को अचानक एक स्वर्गदूत उनके सामने प्रकट हुआ। यहोवा की महिमा का तेज उनके चारों तरफ चमक उठा और स्वर्गदूत ने उन्हें बताया कि बेतलेहेम में अभी-अभी मसीहा पैदा हुआ है। वे उस बच्चे को कपड़े की पट्टियों में लिपटा और चरनी में रखा हुआ पाएँगे। उसके बाद चरवाहों ने और भी शानदार नज़ारा देखा: स्वर्गदूतों का एक बड़ा दल प्रकट हुआ और वे यहोवा की महिमा करने लगे!​—लूका 2:8-14.

15 इसीलिए वे आदमी बेतलेहेम दौड़े-दौड़े आए! जब उन्होंने बच्चे को चरनी में रखा हुआ देखा, ठीक जैसे स्वर्गदूत ने उन्हें बताया था तो वे कितने रोमांचित हुए होंगे! उन्होंने यह खुशखबरी अपने तक नहीं रखी। “उन्होंने वे सारी बातें बतायीं . . . जितनों ने चरवाहों की बातें सुनीं, वे सब ताज्जुब करने लगे।” (लूका 2:17, 18) सबूत दिखाते हैं कि उस ज़माने के धर्म गुरु चरवाहों को तुच्छ समझते थे। लेकिन यहोवा ने उन दीन और वफादार चरवाहों को ही अपने बेटे के जन्म की खुशखबरी देकर ज़ाहिर किया कि वे उसकी नज़र में अनमोल हैं। अब सवाल है कि चरवाहों के आने का मरियम पर क्या असर हुआ?

यहोवा ने उन दीन और वफादार चरवाहों को अनमोल समझा

16. (क) क्या दिखाता है कि मरियम बातों पर गहराई से सोचती थी? (ख) क्या वजह थी कि मरियम ज़िंदगी-भर अपने विश्‍वास में अटल रही?

16 मरियम बेशक बच्चा जनने की पीड़ा से पस्त थी, फिर भी उसने चरवाहों की एक-एक बात ध्यान से सुनी। यही नहीं, उसने “इन सब बातों को अपने दिल में संजोकर रखा और वह इनके मतलब के बारे में गहराई से सोचने लगी।” (लूका 2:19) वाकई, मरियम बातों पर गहराई से सोचती थी। वह जानती थी कि स्वर्गदूत का दिया संदेश बहुत मायने रखता है। उसका परमेश्‍वर यहोवा चाहता था कि वह यह बात जाने और अच्छी तरह समझे कि उसका बेटा कौन है और कितना महान होगा। इसलिए मरियम ने न सिर्फ ये बातें सुनीं बल्कि उन्हें अपने दिल में संजोकर रखा ताकि वह आनेवाले महीनों और सालों के दौरान इन पर बार-बार सोच सके। यही एक बड़ी वजह है कि क्यों मरियम ज़िंदगी-भर अपने विश्‍वास में अटल रही।​—इब्रानियों 11:1 पढ़िए।

मरियम ने चरवाहों की बातें ध्यान से सुनीं और उन्हें दिल में संजोए रखा

17. बाइबल की सच्चाइयों के मामले में हम मरियम की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

17 क्या आप मरियम की मिसाल पर चलेंगे? यहोवा ने अपने वचन बाइबल में अहम सच्चाइयाँ दर्ज़ करवायी हैं। उनसे हमें तभी फायदा होगा जब हम उन पर ध्यान देंगे। इसके लिए ज़रूरी है कि हम नियमित तौर पर बाइबल पढ़ें। लेकिन हमें इसे सिर्फ एक अच्छी किताब समझकर नहीं बल्कि परमेश्‍वर का प्रेरित वचन समझकर पढ़ना चाहिए। (2 तीमु. 3:16) फिर मरियम की तरह हमें इन सच्चाइयों को अपने दिल में संजोकर रखना चाहिए और उनके बारे में गहराई से सोचते रहना चाहिए। अगर हम बाइबल में पढ़ी बातों पर मनन करें और सोचें कि कैसे हम यहोवा की सलाह पर और अच्छी तरह चल सकते हैं, तो हम अपना विश्‍वास बढ़ा पाएँगे।

दिल में संजोने के लिए और भी बातें

18. (क) मरियम और यूसुफ ने मूसा के कानून का पालन कैसे किया? (ख) यूसुफ और मरियम की भेंट से उनकी हैसियत के बारे में क्या पता चलता है?

18 मूसा के कानून के मुताबिक, लड़के के जन्म के आठवें दिन उसका खतना करवाना ज़रूरी था। यूसुफ और मरियम ने इस कानून को माना, साथ ही अपने बच्चे का नाम यीशु रखा, जैसे उन्हें बताया गया था। (लूका 1:31) फिर 40वें दिन वे यीशु को बेतलेहेम से करीब 10 किलोमीटर दूर यरूशलेम के मंदिर में ले गए और उन्होंने शुद्ध होने के लिए एक भेंट चढ़ायी। कानून के मुताबिक शुद्ध होने के लिए एक मेढ़ा और एक फाख्ता चढ़ाना होता था। लेकिन जिनकी इतनी हैसियत नहीं होती, वे दो फाख्ता या दो कबूतर चढ़ा सकते थे। यूसुफ और मरियम ने दो छोटे पंछी भेंट में चढ़ाए। शायद उन्हें शर्मिंदा महसूस हुआ हो, फिर भी उन्होंने कानून का पालन किया। जितनी देर वे मंदिर में रहे उस दौरान उन्हें काफी हौसला मिला।​—लूका 2:21-24.

19. (क) शिमोन की बतायी किन बातों को मरियम ने दिल में संजोया? (ख) हन्‍ना ने यीशु को देखकर क्या किया?

19 मंदिर में शिमोन नाम का एक बुज़ुर्ग आदमी यूसुफ और मरियम के पास आया और उसने उन्हें कुछ ऐसी बातें बतायीं जिन्हें मरियम ने अपने दिल में संजो लिया। उसने बताया कि यहोवा ने उससे वादा किया था कि वह जीते-जी मसीहा को ज़रूर देखेगा। अब यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने उस पर ज़ाहिर किया है कि नन्हा यीशु ही मसीहा है। उसने मरियम को यह भी बताया कि एक दिन उसे बहुत दुख सहना पड़ेगा। उस वक्‍त वह ऐसा महसूस करेगी मानो एक लंबी तलवार उसके आर-पार हो गयी है। (लूका 2:25-35) भले ही इन शब्दों से पता चलता है कि कुछ बुरा होनेवाला था, लेकिन इन शब्दों से मरियम को उस मुश्‍किल घड़ी का सामना करने में मदद मिली जो 33 साल बाद आयी। शिमोन के बाद हन्‍ना नाम की एक भविष्यवक्‍तिन ने नन्हे यीशु को देखा और वह उसके बारे में उन सबको बताने लगी जो यरूशलेम के छुटकारे का इंतज़ार कर रहे थे।​—लूका 2:36-38 पढ़िए।

मरियम और यूसुफ को यहोवा के मंदिर में बहुत हौसला मिला

20. यूसुफ और मरियम ने बच्चे को मंदिर लाकर क्यों सही फैसला किया?

20 यूसुफ और मरियम ने बच्चे को यहोवा के मंदिर लाकर कितना बढ़िया फैसला किया! इस तरह उन्होंने अपने बेटे में छुटपन से ही यहोवा के मंदिर में हमेशा हाज़िर होने की अच्छी आदत डाली। उन्होंने मंदिर में यहोवा को ऐसी भेंट दी जो उनकी तरफ से सबसे बढ़िया थी। वहाँ उन्होंने कुछ अनमोल बातें सीखीं और हौसला पाया। इसमें कोई शक नहीं कि मंदिर से लौटने पर मरियम का विश्‍वास पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत हुआ। अब उसके दिल में अनमोल सच्चाइयों का खज़ाना भरा था, जिन पर वह मनन कर सकती थी और दूसरों को भी बता सकती थी।

21. मरियम की तरह अपना विश्‍वास मज़बूत करते रहने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

21 आज हमें यह देखकर कितनी खुशी होती है कि यहोवा के साक्षियों में कई माता-पिता यूसुफ और मरियम की मिसाल पर चल रहे हैं। वे अपने बच्चों को हर सभा में साथ लाते हैं। वे सभा में अपनी तरफ से बढ़िया भेंट चढ़ाते हैं, यानी अपनी बातों से दूसरे भाई-बहनों का हौसला बढ़ाते हैं। जब वे सभाओं से लौटते हैं तो उनके चेहरे खुशी से खिले होते हैं, उनका विश्‍वास पहले से ज़्यादा मज़बूत होता है और उनका दिल अच्छी बातों से भरा होता है जिन्हें वे दूसरों को बताने के लिए बेताब होते हैं। ऐसे माता-पिताओं से मिलकर हमें बहुत खुशी होती है! उनकी संगति करने से हम पाएँगे कि मरियम की तरह हमारा विश्‍वास भी मज़बूत होता जाएगा।

^ पैरा. 7 गौर कीजिए कि मरियम के इस सफर और पहले के एक सफर में क्या फर्क बताया गया है। पहले के सफर में सिर्फ इतना कहा गया कि उसने इलीशिबा से मिलने के लिए “जल्दी-जल्दी तैयारी की और . . . निकल पड़ी।” (लूका 1:39) उस वक्‍त उसकी सिर्फ मँगनी हुई थी, शादी नहीं। इसलिए हो सकता है इलीशिबा के पास जाने के लिए उसने यूसुफ से नहीं पूछा था। लेकिन शादी के बाद ऐसा नहीं था। बाइबल के मुताबिक, बेतलेहेम जाने का फैसला यूसुफ ने लिया था, मरियम ने नहीं।

^ पैरा. 10 उन दिनों मुसाफिरों और कारवाँ के रुकने के लिए शहरों में एक बड़ा कमरा हुआ करता था।

^ पैरा. 14 बाइबल में दर्ज़ घटनाओं के क्रम से पता चलता है कि यीशु का जन्म अक्टूबर की शुरूआत में हुआ था, न कि दिसंबर में। चरवाहों का उस समय अपनी भेड़ों के साथ बाहर रहना इसी बात को पुख्ता करता है। दिसंबर में कड़ाके की ठंड पड़ती है और ऐसे में चरवाहे अपनी भेड़ों को खुले में नहीं बल्कि घर के पास बाड़ों में रखते थे।