इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

शादी को कैसे बनाएँ कामयाब

शादी को कैसे बनाएँ कामयाब

बाइबल क्या कहती है?

शादी को कैसे बनाएँ कामयाब

“जिसने उनकी सृष्टि की थी, उसने शुरूआत से ही उन्हें नर और नारी बनाया था और कहा था, ‘इस वजह से पुरुष अपने पिता और अपनी माँ को छोड़ देगा और अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे’ . . . इसलिए जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है, उसे कोई इंसान अलग न करे।”—यीशु मसीह के शब्द जो मत्ती 19:4-6 में दर्ज़ हैं।

दुनिया के नैतिक मूल्य दिन-ब-दिन बदलते जा रहे हैं और लोग अब शादी के बंधन को उम्र-भर का बंधन नहीं मानते। कई पति-पत्नी साथ रहते हैं मगर जहाँ उनके बीच का शारीरिक आकर्षण खत्म हो जाता है या कोई समस्या उठती है, वे अलग हो जाते हैं या तलाक ले लेते हैं। कभी-कभी तो समस्या छोटी-सी बात को लेकर शुरू होती है और नौबत अलग होने तक पहुँच जाती है। माँ-बाप की इस लड़ाई में अकसर उनके मासूम बच्चे पिसकर रह जाते हैं।

बाइबल के विद्यार्थियों को ये हालात देखकर कोई ताज्जुब नहीं होता। क्योंकि बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी कि “आखिरी दिनों” में यानी जिस समय में हम जी रहे हैं, लोगों में वफादारी, सच्चा प्यार, मोह-ममता नहीं होगी, ऐसे गुण जो परिवार के सदस्यों को आपस में जोड़े रखते हैं। (2 तीमुथियुस 3:1-5) क्या आप शादी के बंधन को उम्र-भर का बंधन मानते हैं? क्या गिरते नैतिक मूल्यों और परिवारों पर इसके असर को देखकर आप परेशान हो जाते हैं?

अगर ऐसा है, तो यह जानकर आपको तसल्ली मिलेगी कि बाइबल शादी के बंधन को मज़बूत कर सकती है। इसमें दी सलाहों ने पहले भी पति-पत्नियों की मदद की है और आज भी ये उतनी ही फायदेमंद हैं। आइए हम ऐसे सिर्फ पाँच सिद्धांतों पर गौर करें। *

शादी को कामयाब बनाने के पाँच राज़

(1) शादी को एक पवित्र बंधन समझिए। जैसा कि बायीं तरफ दिए यीशु के शब्दों से पता चलता है, यीशु और सृष्टिकर्ता यहोवा परमेश्‍वर की नज़रों में शादी एक पवित्र बंधन है। परमेश्‍वर ने पुराने ज़माने के कुछ आदमियों को जो कड़ी ताड़ना दी, उससे यह बात पुख्ता होती है। वे लोग अपनी पत्नियों को तलाक दे रहे थे, ताकि जवान औरतों से शादी कर सकें। उनसे परमेश्‍वर ने कहा: “यहोवा तेरे और तेरी उस जवानी की संगिनी और ब्याही हुई स्त्री के बीच साक्षी हुआ था जिस का तू ने विश्‍वासघात किया है।” फिर यहोवा ने यह गंभीर बात कही: “मुझे उस से घृणा है, जो एक पत्नी से अन्याय करके दूसरी के साथ गाँठ जोड़ता है।” (वाल्द-बुल्के अनुवाद) (मलाकी 2:14-16) इससे साफ ज़ाहिर है कि परमेश्‍वर शादी को कोई मज़ाक नहीं समझता। उसे इस बात से फर्क पड़ता है कि पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ कैसे पेश आते हैं।

(2) एक ज़िम्मेदार पति बनिए। जब परिवार से जुड़े कुछ ज़रूरी मामले उठते हैं, तब किसी को तो फैसला लेना होता है। बाइबल यह ज़िम्मेदारी पति को देती है। इफिसियों 5:23 में लिखा है: “पति अपनी पत्नी का सिर है।” लेकिन मुखियापन का मतलब यह नहीं कि पति तानाशाह बन जाए। उसे याद रखना चाहिए कि वह और उसकी पत्नी “एक तन” हैं। उसे अपनी पत्नी का आदर करना चाहिए और परिवार से जुड़े मामलों में उसकी राय लेनी चाहिए। (1 पतरस 3:7) बाइबल सलाह देती है कि “पतियों को चाहिए कि वे अपनी-अपनी पत्नी से ऐसे प्यार करते रहें जैसे अपने शरीर से।”—इफिसियों 5:28.

(3) साथ निभानेवाली पत्नी बनिए। बाइबल में पत्नी को पति का ऐसा साथी कहा गया है जो उससे “मेल खाए।” (उत्पत्ति 2:18) पत्नी ऐसे गुण दिखाती है जिनसे शादी का रिश्‍ता और मज़बूत बनता है। वह प्यार-से अपने पति का साथ देती है, न कि खुद को उससे बेहतर साबित करने की कोशिश करती है। इस तरह वह परिवार में शांति बनाए रखती है। इफिसियों 5:22 में बताया गया है: “पत्नियाँ अपने-अपने पति के . . . अधीन रहें।” लेकिन अगर किसी मामले में पत्नी अपने पति से सहमत न हो, तो? ऐसे में वह अपनी राय ज़ाहिर कर सकती है, मगर उसे आदर के साथ बात करनी चाहिए। ठीक जैसा वह चाहती है कि उसका पति उससे बात करे।

(4) इस सच को कबूल कीजिए कि समस्याएँ ज़रूर उठेंगी। पति-पत्नी के रिश्‍ते में कई वजहों से तनाव पैदा हो सकता है। शायद यह चुभनेवाली या बिना सोचे-समझे कही गयी बात हो, पैसों को लेकर कोई परेशानी हो, गंभीर बीमारी या बच्चों की परवरिश को लेकर कोई चिंता हो। इसलिए बाइबल हमें इस हकीकत से रू-ब-रू कराती है कि जो शादी करते हैं “उन्हें शारीरिक दुःख-तकलीफें झेलनी पड़ेंगी।” (1 कुरिंथियों 7:28) लेकिन ज़रूरी नहीं कि दुख-तकलीफों या मुश्‍किलों की वजह से शादी का रिश्‍ता कमज़ोर पड़ जाए। दरअसल जब दो लोग एक-दूसरे से प्यार करते हैं और परमेश्‍वर के वचन में दी बुद्धि का इस्तेमाल करते हैं, तो वे उन समस्याओं को सुलझा पाते हैं जो उनके रिश्‍ते में दरार पैदा कर सकती हैं। अगर आप अपने परिवार में उठनेवाली समस्याओं को सुलझाने के लिए परमेश्‍वर से बुद्धि चाहते हैं, तो बाइबल बढ़ावा देती है: “तुम में से किसी को बुद्धि की कमी हो तो वह परमेश्‍वर से माँगता रहे क्योंकि परमेश्‍वर अपने सभी माँगनेवालों को उदारता से और बिना डाँटे-फटकारे बुद्धि देता है।”—याकूब 1:5.

(5) एक-दूसरे के वफादार रहिए। व्यभिचार या शादी के बाहर यौन-संबंध रखने से, पति-पत्नी के रिश्‍ते को जितना खतरा हो सकता है, उतना शायद ही किसी और वजह से हो। परमेश्‍वर के मुताबिक व्यभिचार ही वह आधार है, जिस पर तलाक लिया जा सकता है। (मत्ती 19:9) बाइबल कहती है: “शादी सब लोगों के बीच आदर की बात हो और शादी की सेज दूषित न की जाए। क्योंकि परमेश्‍वर व्यभिचारियों और शादी के बाहर यौन-संबंध रखनेवालों को सज़ा देगा।” (इब्रानियों 13:4) पति-पत्नी क्या कर सकते हैं ताकि वे अपनी लैंगिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने साथी को छोड़ किसी और के पास जाने के लिए लुभाए न जाएँ? बाइबल में बताया गया है: “पति अपनी पत्नी का हक अदा करे और उसी तरह पत्नी भी अपने पति का हक अदा करे।”—1 कुरिंथियों 7:3, 4.

कुछ लोगों को शायद लगे कि ये पाँच सिद्धांत पुराने हो चुके हैं और आज के लिए कारगर नहीं। लेकिन जिन लोगों ने इन्हें लागू किया है, उनका अनुभव कुछ और ही कहता है। इन सिद्धांतों को लागू करने से इतने फायदे मिलते हैं, जितने कि उस इंसान को जो ज़िंदगी के हर मामले में परमेश्‍वर के मार्गदर्शन पर चलता है। ऐसे इंसान के बारे में कहा गया है: “वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।” (भजन 1:2, 3) “जो कुछ” में शादी को कामयाब बनाना भी शामिल है। (g11-E 11)

[फुटनोट]

^ ज़्यादा जानकारी के लिए जुलाई-सितंबर, 2011 की प्रहरीदुर्ग देखिए, जो इस पत्रिका के साथ छपती है।

क्या आपने कभी सोचा है?

● तलाक के बारे में परमेश्‍वर का क्या नज़रिया है?—मलाकी 2:14-16.

● एक पति को अपनी पत्नी के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?—इफिसियों 5:23, 28.

● किसकी बुद्धि पर चलने से शादी में कामयाबी मिल सकती है?—भजन 1:2, 3.