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क्या इसे रचा गया था?

पक्षियों के पंखों के उठे हुए किनारे

पक्षियों के पंखों के उठे हुए किनारे

जब एक विमान आसमान में हवा को चीरता हुआ आगे बढ़ता है, तो उसके पंखों के कोनों पर हवा बड़ी तेज़ी से गोल-गोल घूमने लगती है, ठीक एक बवंडर की तरह। इस बवंडर की वजह से एक खिंचाव पैदा होता है, जिससे विमान को आगे बढ़ने के लिए ज़्यादा ईंधन की ज़रूरत पड़ती है। ये हवाएँ विमान के बिलकुल पीछे आनेवाले विमान से टकरा सकती हैं, और जो उसके लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए एक ही हवाई-पट्टी से उड़ान भरनेवाले विमानों के रवाना होने के बीच कुछ समय का फासला होना चाहिए, ताकि ये हवाएँ थम जाएँ।

विमान बनानेवाले इंजीनियरों ने इन समस्याओं का हल खोज निकाला है। कैसे? विमानों के पंखों को गिद्ध, लगलग और उकाब जैसे पक्षियों के पंखों की तरह बनाकर।

गौर कीजिए: जब गिद्ध, लगलग और उकाब जैसे पक्षी उड़ते हैं, तो वे अपने पंखों के किनारों को ऊपर की तरफ मोड़ लेते हैं। इस वजह से पक्षियों के पंखों की लंबाई कम हो जाती है, और वे ऊँची उड़ान भर पाते हैं। इससे उड़ान में कम ताकत लगती है और वे लंबे समय तक उड़ पाते हैं। इंजीनियरों ने पक्षियों के पंखों की नकल करके विमानों के पंख भी इसी तरह के बनाए हैं। इंजीनियरों ने परीक्षणों के दौरान विमानों के पंखों के कोनों को हवा के बहाव को ध्यान में रखते हुए ऊपर की तरफ मोड़ा। उन्होंने पाया कि ऐसा करने से 10 प्रतिशत ईंधन की बचत हुई। वह कैसे? जब पंखों के कोनों को मोड़ दिया जाता है, तो इससे बवंडर का दायरा कम हो जाता है। नतीजा, विमान का खिंचाव कम हो जाता है। इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फ्लाइट नाम की किताब बताती है कि ऐसे पंखों की वजह से विमान को आगे बढ़ने में भी मदद मिलती है।

ऐसे पंखों की वजह से विमान लंबे समय तक उड़ पाते हैं और ज़्यादा वज़न उठा पाते हैं। पंखों की लंबाई कम होने की वजह से हवाई अड्डे में विमान को खड़ा करने के लिए कम जगह लगती है और ईंधन की भी कम खपत होती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बदलाव की वजह से 2010 में हवाई जहाज़ कंपनियों ने दुनिया-भर में 760 करोड़ लीटर तेल की बचत की और विमानों से होनेवाले प्रदूषण में भी ज़बरदस्त कटौती हुई।

आपको क्या लगता है? क्या पक्षियों के इस तरह के पंखों का विकास खुद-ब-खुद हो गया, या फिर उन्हें इस तरह रचा गया था? ▪ (g15-E 02)