इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करो

एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करो

“एक-दूसरे की सहते रहो और एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करो।”—कुलु. 3:13.

1, 2. यह गौर करना क्यों ज़रूरी है कि हम दूसरों को माफ करने के लिए तैयार रहते हैं या नहीं?

 यहोवा का वचन हमें यह जानने में मदद देता है कि वह पाप को किस नज़र से देखता है और जब हम पाप करते हैं तो वह हमारे साथ किस तरह पेश आता है। उसका वचन यह भी बताता है कि वह हमें माफ करने को तैयार रहता है। पिछले लेख में हमने देखा कि दाविद और मनश्‍शे ने किस तरह का रवैया दिखाया, जिसकी वजह से यहोवा ने उन्हें माफ किया। उन्हें अपने किए पर गहरा अफसोस था इसलिए उन्होंने अपने पाप कबूल किए, अपने बुरे कामों से मुँह मोड़ा और सच्चा पश्‍चाताप दिखाया। बदले में यहोवा ने दोबारा उनको अपने सेवक के तौर पर मंज़ूर किया।

2 आइए अब गौर करें कि दूसरों को माफ करने के लिए हम कितना तैयार रहते हैं। ज़रा सोचिए, मनश्‍शे ने जिन मासूमों की जान ली अगर उनमें से कोई आपका सगा-संबंधी होता तो आपको कैसा लगता? क्या आप मनश्‍शे को माफ कर पाते? यह एक ज़रूरी सवाल है क्योंकि आज की दुनिया दुष्टता, हिंसा और लालच से भरी हुई है। ऐसे में एक मसीही को माफ करने के लिए तैयार क्यों होना चाहिए? अगर आपके साथ बुरा सुलूक या अन्याय होता है, तो क्या बात आपकी मदद करेगी कि आप अपने जज़्बातों पर काबू रखें, वैसे पेश आएँ जैसा यहोवा चाहता है और माफ करने के लिए तैयार रहें?

हमें क्यों दूसरों को माफ करना चाहिए

3-5. (क) हमें दूसरों को माफ करना चाहिए, यह बात समझाने के लिए यीशु ने कौन-सी मिसाल दी? (ख) मत्ती 18:21-35 में दर्ज़ यीशु की मिसाल से हमें क्या सीख मिलती है?

3 जब कोई हमें ठेस पहुँचाता है तो हमें उसे माफ करने को तैयार रहना चाहिए, फिर चाहे वह मसीही मंडली का सदस्य हो या कोई बाहरवाला। इससे हम अपने घरवालों, दोस्तों, दूसरे लोगों के साथ और यहोवा के साथ शांति बनाए रख पाते हैं। बाइबल बताती है कि दूसरे चाहे जितनी बार हमारे खिलाफ पाप करें, मसीहियों से यह माँग की जाती है कि वे उन्हें माफ करने को तैयार रहें। यह माँग कितनी जायज़ है, इसे समझाने के लिए यीशु ने एक दास की मिसाल दी जो कर्ज़ में डूबा हुआ था।

4 इस दास ने अपने मालिक से बहुत बड़ी रकम उधार ली थी, इतनी कि उसे चुकाने में उसे 6 करोड़ दिन लग जाते। फिर भी उसके मालिक ने उसका सारा कर्ज़ माफ कर दिया। लेकिन वही दास बाहर निकला और उसने अपने संगी दास को ढूँढ़ा जिसने उससे कुछ पैसे उधार लिए थे। यह रकम चुकाने में उसे सिर्फ 100 दिन लगते। उसने कुछ और दिन की मोहलत माँगी। लेकिन पहले दास ने उसकी एक न सुनी और उसे जेल में डलवा दिया। पहले दास का यह रवैया देखकर मालिक को बहुत गुस्सा आया। उसने उस दास से पूछा: “‘क्या तेरा यह फर्ज़ नहीं था कि तू भी बदले में अपने संगी दास पर वैसे ही दया करता, जैसे मैंने तुझ पर दया की थी?’ तब मालिक का गुस्सा भड़क उठा और उसने उस दास को तब तक के लिए जेलरों के हवाले कर दिया, जब तक कि वह उसकी पाई-पाई न चुका दे।”—मत्ती 18:21-34.

5 इस मिसाल से यीशु हमें क्या सीख देना चाहता था? वह आगे बताता है: “इसी तरह, अगर तुममें से हरेक अपने भाई को दिल से माफ न करेगा, तो मेरा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे साथ इसी तरह पेश आएगा।” (मत्ती 18:35) यीशु की बात साफ है। हम असिद्ध हैं और लाख कोशिश करने पर भी हम यहोवा के स्तरों पर पूरी तरह खरे नहीं उतर सकते। तभी हम कई बार गलतियाँ और पाप कर बैठते हैं। फिर भी यहोवा हमें माफ करने और हमारे साथ इस तरह पेश आने को तैयार है मानो हमने कोई पाप किया ही न हो। इसलिए जो यहोवा के मित्र बनना चाहते हैं, उन्हें दूसरों की गलतियों को माफ करना ही होगा। यीशु का भी यही मतलब था जब उसने अपने पहाड़ी उपदेश में कहा: “अगर तुम दूसरों के अपराध माफ करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें माफ करेगा। लेकिन अगर तुम दूसरों के अपराध माफ नहीं करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध माफ नहीं करेगा।”—मत्ती 6:14, 15.

6. दूसरों को माफ करना अकसर इतना आसान क्यों नहीं होता?

6 शायद आप कहें, ‘ये बातें सुनने में ही अच्छी लगती हैं।’ क्योंकि जब कोई हमें चोट पहुँचाता है तो हम अकसर जज़्बाती हो जाते हैं। हमें शायद गुस्सा आए, हमें लगे कि हमारे साथ धोखा हुआ है, हमें इंसाफ चाहिए या फिर हम बदला लेने की सोचें। कुछ लोगों को तो लगता है कि वे ऐसे इंसान को कभी माफ नहीं कर पाएँगे। अगर आप भी ऐसा महसूस करते हैं, तो आप क्या कर सकते हैं जिससे आप दूसरों को माफ करें, ठीक जैसा यहोवा आपसे चाहता है?

अपने जज़्बातों को समझिए

7, 8. अगर कोई आपके साथ बुरा सुलूक करता है, तो उसे माफ करने में क्या बात आपकी मदद करेगी?

7 जब हमारे साथ बुरा सुलूक किया जाता है या हमें लगता है कि हमारे साथ बुरा सुलूक हो रहा है, तो हम बहुत जल्दी बुरा मान जाते हैं। गौर कीजिए कि गुस्से में आकर एक जवान लड़के ने क्या किया। वह कहता है, ‘मैं घर से निकल गया और कसम खायी कि इस घर की तरफ दोबारा मुड़कर भी नहीं देखूँगा। मुझे आज भी अच्छी तरह याद है कि वह गर्मियों का दिन था और मैं एक छोटी-सी सड़क पर चलते-चलते बहुत दूर निकल गया। चारों तरफ का माहौल बहुत शांत और खूबसूरत था जिससे मेरा गुस्सा भी ठंडा हो गया। कुछ घंटों बाद मैं वापस घर आ गया और मुझे अफसोस हुआ कि मैंने इतना गुस्सा क्यों किया।’ जैसा यह अनुभव दिखाता है, अगर आप कुछ समय बीतने दें और खुद को शांत होने दें, तो आप मामले के बारे में साफ-साफ सोच पाएँगे और कुछ ऐसा नहीं करेंगे जिससे बाद में आपको पछताना पड़े।—भज. 4:4; नीति. 14:29; याकू. 1:19, 20.

8 लेकिन ऐसा करने के बाद भी अगर आप गुस्से से उबल रहे हैं, तब क्या? यह समझने की कोशिश कीजिए कि क्यों आपका मन शांत नहीं हो रहा। क्या इसलिए कि आपके साथ नाइंसाफी हुई है? या क्या आपको लगता है कि किसी ने जानबूझकर आपको चोट पहुँचायी है? क्या उसने जो किया वह सचमुच बहुत बुरा था? जब आप यह समझने की कोशिश करेंगे कि आपको इतना गुस्सा क्यों आ रहा है, तो आप देख पाएँगे कि ऐसे हालात में दूसरों से पेश आने का सबसे बढ़िया और बाइबल के मुताबिक सही तरीका क्या है। (नीतिवचन 15:28; 17:27 पढ़िए।) जब आप जज़्बातों में बहकर नहीं बल्कि सोच-समझकर मामलों को परखते हैं, तो आप दूसरों को माफ करने के लिए तैयार रहेंगे। हालाँकि ऐसा करना मुश्‍किल है, लेकिन परमेश्‍वर का वचन आपकी मदद कर सकता है कि आप ‘अपने दिल के विचारों और इरादों को जाँचें’ और यहोवा की मिसाल पर चलकर दूसरों को माफ करें।—इब्रा. 4:12.

क्या आपको हर बात दिल पर लेनी चाहिए?

9, 10. (क) जब आपको लगे कि दूसरे ने आपको ठेस पहुँचायी है, तो आप शायद किस तरह पेश आएँ? (ख) झट-से गुस्सा न होने और माफ करने को तैयार रहने से, आप कैसा महसूस करेंगे?

9 ज़िंदगी में ऐसे बहुत-से हालात आते हैं जो हमें गुस्सा दिला सकते हैं। फर्ज़ कीजिए कि आप अपनी कार में जा रहे हैं और दूसरी कार आपसे टकराते-टकराते बच जाती है। आप क्या करेंगे? आपने शायद ऐसी कई घटनाएँ सुनी होंगी जहाँ दो ड्राइवरों के बीच झड़प हुई और एक ने गुस्से में आकर दूसरे पर हमला कर दिया। मगर एक मसीही होने के नाते आप ऐसा हरगिज़ नहीं करना चाहेंगे।

10 अच्छा होगा कि आप कुछ कहने या करने से पहले ठंडे दिमाग से सोचें। हो सकता है जो हुआ उसमें कुछ गलती आपकी हो, आपका ध्यान कहीं और था। या हो सकता है कि दूसरे की गाड़ी में कुछ खराबी थी। कहने का मतलब है कि अगर हम यह समझने की कोशिश करें कि गलती क्यों हुई, कबूल करें कि शायद हमें सारी वजह न पता हों और माफ करने के लिए तैयार रहें, तो हम अपने गुस्से पर काबू रख पाएँगे। सभोपदेशक 7:9 कहता है: “अपने मन में उतावली से क्रोधित न हो, क्योंकि क्रोध मूर्खों ही के हृदय में रहता है।” हर बात को दिल पर मत लीजिए। कई बार हमें लगता है कि दूसरों ने जानबूझकर हमें चोट पहुँचायी है, मगर सच तो यह है कि असिद्धता की वजह से शायद उनसे गलती हुई हो या हमें ही कोई गलतफहमी हुई हो। याद रखिए, दूसरे किस वजह से कुछ कहते या करते हैं, उसकी पूरी जानकारी आपको नहीं है। उन्हें प्यार दिखाने और माफ करने के लिए तैयार रहिए, इस तरह आप ज़्यादा खुश रहेंगे।1 पतरस 4:8 पढ़िए।

‘तुम्हारी शांति तुम्हारे पास लौट आए’

11. प्रचार में लोग हमारे साथ चाहे जैसे भी पेश आएँ, हमें कैसा महसूस करना चाहिए?

11 प्रचार में अगर कोई आपके साथ रूखा व्यवहार करता है, तो आप खुद पर काबू कैसे रख सकते हैं? जब यीशु ने 70 चेलों को प्रचार करने भेजा, तो उसने कहा कि वे जिस घर में जाएँ यह कहें: “इस घर को शांति मिले।” यीशु ने आगे कहा: “अगर वहाँ कोई शांति चाहनेवाला हो, तो तुम्हारी शांति उस पर बनी रहेगी। लेकिन अगर न हो तो तुम्हारी शांति तुम्हारे पास लौट आएगी।” (लूका 10:1, 5, 6) हमें खुशी होती है जब लोग हमारा संदेश सुनते हैं, क्योंकि तभी वे उससे फायदा पा सकेंगे। लेकिन कभी-कभी वे हमारे साथ शांति से पेश नहीं आते। ऐसे में क्या किया जाए? यीशु ने कहा कि जो शांति हमने उस घर पर माँगी थी, वह हमारे पास लौट आए। लोग हमारे साथ चाहे जैसे भी पेश आएँ, उनके पास से जाते वक्‍त हमारे दिल में शांति होनी चाहिए। उनके भड़कने पर अगर हम बुरा मान जाएँ, तो हम अपनी शांति बनाए नहीं रख पाएँगे।

12. इफिसियों 4:31, 32 में पौलुस के कहे शब्दों के मुताबिक, हमें किस तरह पेश आना चाहिए?

12 सिर्फ मसीही सेवा में ही नहीं, बल्कि हर हालात में अपनी शांति बनाए रखने की कोशिश कीजिए। यह सच है कि दूसरों को माफ करने का यह मतलब नहीं कि आपने उनके गलत कामों की तरफ आँखें मूँद ली हैं या इस बात को अनदेखा किया है कि उनके कामों से दूसरों को नुकसान हुआ है। इसके बजाय, माफ करने का मतलब है ऐसे लोगों के लिए अपने दिल में नाराज़गी न बढ़ने देना और अपनी शांति बनाए रखना। कुछ लोग अपने साथ हुए अन्याय के बारे में सोच-सोचकर अपनी शांति खो देते हैं। ऐसी बातों को अपने ऊपर हावी मत होने दीजिए। याद रखिए, अगर आप मन में नाराज़गी पालते हैं तो आप खुश नहीं रह सकते। इसलिए माफ करने को तैयार रहिए!इफिसियों 4:31, 32 पढ़िए।

इस तरह पेश आइए जिससे यहोवा खुश हो

13. (क) एक मसीही अपने दुश्‍मन के सिर पर “अंगारों का ढेर” कैसे लगाता है? (ख) आपके साथ बुरा बर्ताव करनेवाले के साथ कोमलता से पेश आने का क्या नतीजा हो सकता है?

13 कभी-कभी हो सकता है कि कोई बाहरवाला आपके साथ बुरा सुलूक करे। लेकिन आप अपने व्यवहार से उसे सच्चाई की तरफ खींच सकते हैं। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “‘अगर तेरा दुश्‍मन भूखा हो तो उसे खाना खिला। अगर वह प्यासा है तो उसे पानी पिला, इसलिए कि ऐसा करने से तू उसके सिर पर अंगारों का ढेर लगाएगा।’ बुराई से न हारो बल्कि भलाई से बुराई को जीतते रहो।” (रोमि. 12:20, 21) दूसरों के भड़कने पर अगर आप अदब से पेश आते हैं, तो कठोर-से-कठोर इंसान भी पिघल सकता है और उसकी अच्छाइयाँ निखरकर सामने आ सकती हैं। आपके साथ बुरा बर्ताव करनेवाले को अगर आप समझने की कोशिश करें और उसके साथ करुणा से पेश आएँ, तो हो सकता है बाइबल की सच्चाइयाँ सीखने में आप उसकी मदद कर पाएँ। अगर ऐसा न भी हो तौभी, आपका कोमल व्यवहार देखकर वह सोचने पर मजबूर होगा कि आप दूसरों से इतने अलग क्यों हैं।—1 पत. 2:12; 3:16.

14. एक इंसान चाहे आपके साथ कितना ही बुरा सलूक क्यों न करे, उसे माफ करना क्यों ज़रूरी है?

14 लेकिन कुछ लोगों के साथ संगति करना मुनासिब नहीं होगा। इनमें वे लोग शामिल हैं जो पहले मंडली का हिस्सा थे, मगर फिर पाप में पड़ गए, उन्होंने प्रायश्‍चित नहीं किया और आखिरकार मंडली से बहिष्कृत कर दिए गए। अगर ऐसे किसी व्यक्‍ति के गंभीर पाप से आपको चोट पहुँची है तो उसे माफ करना शायद आपके लिए बहुत मुश्‍किल हो। चाहे वह आगे चलकर पश्‍चाताप क्यों न करे, तौभी उसने जो किया उसे भुलाना आपके लिए आसान न हो। ऐसे में, यहोवा से प्रार्थना करते रहिए ताकि वह उस इंसान को माफ करने में आपकी मदद करे। यह सही भी है क्योंकि दूसरों के दिल में क्या है यह आप नहीं जान सकते, लेकिन यहोवा जानता है। वह एक इंसान के दिल की गहराइयों में झाँक सकता है और गुनहगारों के साथ सब्र से काम लेता है। (भज. 7:9; नीति. 17:3) इसलिए बाइबल कहती है: “किसी को भी बुराई का बदला बुराई से न दो। ऐसे काम करने की कोशिश में रहो जो सबकी नज़र में बढ़िया हों। जहाँ तक तुमसे हो सके, सबके साथ शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश करो। हे प्यारो, अपना बदला मत लेना, मगर परमेश्‍वर के क्रोध को मौका दो, क्योंकि लिखा है: ‘यहोवा कहता है, बदला देना मेरा काम है, मैं ही बदला चुकाऊँगा।’” (रोमि. 12:17-19) हम यहोवा की तरह दूसरों के दिल की बात नहीं जानते और बाइबल भी कहती है कि हमें दूसरों पर दोष नहीं लगाना चाहिए। (मत्ती 7:1, 2) लेकिन आप भरोसा रख सकते हैं कि परमेश्‍वर सबकुछ जानता है और वह सच्चा न्याय करेगा।

15. गलती करनेवाले के बारे में कौन-सी बात याद रखने से हमारा नज़रिया बदल सकता है?

15 अगर आपको लगता है कि आप किसी अन्याय का शिकार हुए हैं और गलती करनेवाले ने पश्‍चाताप किया है मगर आप उसे माफ नहीं कर पा रहे, तो यह याद रखना अच्छा होगा कि वह भी अपनी असिद्धता का शिकार है, वही असिद्धता जिससे हम सब जूझते हैं। (रोमि. 3:23) यहोवा पूरी असिद्ध मानवजाति के लिए करुणा महसूस करता है। इसलिए जिसने हमें चोट पहुँचायी है उसके लिए प्रार्थना करना सही है। और जब हम किसी के लिए प्रार्थना करते हैं तो शायद ही हम उससे ज़्यादा देर नाराज़ रहें। गलती करनेवाले के लिए हमें अपने दिल में नाराज़गी नहीं पालनी चाहिए, इस बात पर ज़ोर देने के लिए यीशु ने कहा: “अपने दुश्‍मनों से प्यार करते रहो और जो तुम पर ज़ुल्म कर रहे हैं, उनके लिए प्रार्थना करते रहो।”—मत्ती 5:44.

16, 17. अगर प्राचीन फैसला करते हैं कि एक गुनहगार को सच्चा पछतावा है, तो आपको कैसा रवैया दिखाना चाहिए? और क्यों?

16 यहोवा ने मसीही प्राचीनों को मंडली में गंभीर पाप के मामलों को निपटाने की ज़िम्मेदारी सौंपी है। ये भाई यहोवा की तरह हर बात तो नहीं जानते, लेकिन उनका लक्ष्य होता है कि उनके फैसले परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक और पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में हों। इसलिए जब वे परमेश्‍वर से प्रार्थना करके कोई फैसला लेते हैं, तो हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि उनके फैसले परमेश्‍वर की सोच के मुताबिक हैं।—मत्ती 18:18.

17 ऐसे हालात में हमारी वफादारी की असल परख होती है। अगर प्राचीन फैसला करते हैं कि एक व्यक्‍ति को सच्चा पछतावा है, तो क्या आप उस व्यक्‍ति को माफ करेंगे और उसे अपने प्यार का सबूत देंगे? (2 कुरिं. 2:5-8) ऐसा करना आसान नहीं, खासकर जब उसने आपके या आपके परिवार के किसी सदस्य के खिलाफ पाप किया हो। लेकिन अगर आप यहोवा पर और मंडली में ऐसे मामलों को निपटाने के लिए उसके ठहराए इंतज़ाम पर भरोसा रखेंगे, तो आप बुद्धिमानी से काम ले रहे होंगे। आप दिखाएँगे कि आप सचमुच दिल खोलकर माफ करते हैं।—नीति. 3:5, 6.

18. दिल खोलकर माफ करने से आपको क्या फायदे मिल सकते हैं?

18 माफ करने को तैयार न होने के कितने नुकसान होते हैं जैसे, सेहत पर बुरा असर पड़ना, रिश्‍तों का टूटकर बिखरना, तनाव बढ़ना और आपस में ढंग से बातचीत न होना। वहीं दूसरी तरफ, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ कबूल करते हैं कि दूसरों को माफ करने से हमारा दिल हलका होता है और उनके साथ हमारा रिश्‍ता मज़बूत और खुशहाल बनता है। मगर इन सबसे बढ़कर दूसरों को माफ करने के लिए तैयार होने से हम अपने पिता यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बना पाते हैं।कुलुस्सियों 3:12-14 पढ़िए।