अय्यूब 6:1-30
6 तब अय्यूब ने कहा,
2 “काश! मेरी पीड़ा+ को तौला जाता,मुसीबतों के साथ उसे तराज़ू में रखा जाता,
3 तब वह समुंदर की रेत से भी भारी होती।
इसलिए मेरे मुँह से बेसिर-पैर की बातें निकली हैं।+
4 सर्वशक्तिमान ने ज़हरीले तीरों से मुझे छलनी कर दिया है,उनका ज़हर मेरी रग-रग में फैल रहा है।परमेश्वर का कहर मोरचा बाँधे मेरे सामने खड़ा है।
5 अगर जंगली गधे+ को घास मिले, तो वह रेंकेगा क्यों?बैल के आगे चारा हो, तो वह रँभाएगा क्यों?
6 क्या बेस्वाद खाना, बिना नमक के गले से नीचे उतरता है?भला गुलखेर पौधे के रस में कोई स्वाद होता है?
7 ऐसी चीज़ों को मैं हाथ तक नहीं लगाना चाहता,
ये* मेरे लिए सड़े हुए खाने जैसी हैं!
8 काश! मेरी दुआ सुन ली जाए,परमेश्वर मेरी आरज़ू पूरी कर दे,
9 मुझे मसल दे, अपना हाथ बढ़ाकर मुझे खत्म कर दे।+
10 मुझे इसका कोई गम नहीं होगा,दर्दनाक हाल में भी हँसकर मौत को गले लगा लूँगा।क्योंकि मैंने पवित्र परमेश्वर+ की बातों को कभी अनसुना नहीं किया।
11 मुझमें अब और इंतज़ार करने की हिम्मत नहीं।+
जीने के लिए जब कुछ रहा ही नहीं, तो जीकर क्या करूँ?
12 मैं चट्टान जैसा मज़बूत नहीं,
न मेरा शरीर ताँबे का बना है!
13 देखो क्या हाल हो गया है मेरा,मैं खुद की मदद नहीं कर सकता,मेरा हर सहारा छिन गया है।
14 जो अपने साथी का वफादार न रहे,*+उसमें सर्वशक्तिमान का डर कहाँ!+
15 मेरे भाई सर्दियों में बहनेवाली नदी की तरह दगाबाज़ हैं,+जो ज़रूरत की घड़ी में सूख जाती है।
16 पिघलती बर्फ से वह मटमैली हो जाती है,छिपी हिम के गलने से उमड़ पड़ती है,
17 मगर तपती गरमी में वह सूख जाती है, खत्म हो जाती है,चिलचिलाती धूप में वह अपना दम तोड़ देती है।
18 वह बहते-बहते रेगिस्तान में आती हैऔर गायब हो जाती है।
19 तेमा+ से आनेवाले कारवाँ उसकी राह तकते हैं,शीबा+ से आए मुसाफिर* उसके इंतज़ार में रहते हैं।
20 उस पर भरोसा करके वे शर्मिंदा होते हैं,उनके हाथ सिर्फ निराशा लगती है।
21 उसी तरह तुम भी मेरी मुसीबतें देखकर डर गए,तुमने मुझसे किनारा कर लिया।+
22 क्या मैंने तुमसे कुछ माँगा?
क्या मैंने कहा, अपनी दौलत से मेरी मदद करो?
23 क्या मैंने कहा, मुझे दुश्मनों के हाथ से बचा लो?ज़ालिमों के चंगुल से छुड़ा लो?
24 बताओ मैंने क्या किया है? मैं चुपचाप तुम्हारी सुनूँगा।+मुझे समझाओ कि मुझसे कहाँ भूल हुई!
25 खरी बात कभी नहीं अखरती!+
मगर तुम क्या सोचकर मुझे डाँट रहे हो?+
26 क्या तुम मेरी बातों में नुक्स निकालना चाहते हो?दुखी इंसान बहुत कुछ कह जाता है,+ मगर हवा उन बातों को उड़ा ले जाती है।
27 तुम्हारा बस चले तो तुम एक अनाथ पर भी चिट्ठी डाल दो,+अपने दोस्त का सौदा करने से भी पीछे न हटो!+
28 अब ज़रा मुड़कर मेरी तरफ देखो,क्योंकि मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूँगा।
29 मैं बिनती करता हूँ, एक बार फिर सोचो,मुझ पर दोष मत लगाओ,मैं परमेश्वर की नज़र में अब भी नेक हूँ।
30 क्या मैं कुछ गलत कह रहा हूँ?
क्या मुझे नहीं पता मुझ पर क्या बीत रही है?
कई फुटनोट
^ शायद अय्यूब की तकलीफों की या उसके साथियों की दी सलाह की बात की गयी है।
^ या “से अटल प्यार न करे।”
^ या “सबाई लोगों के काफिले।”