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जीवन कहानी

‘बहुत-से द्वीप आनन्द करें!’

‘बहुत-से द्वीप आनन्द करें!’

22 मई, सन्‌ 2000 का दिन मैं कभी नहीं भूल सकता। उस दिन मैं दुनिया के अलग-अलग इलाकों के कई भाइयों के साथ था। हम सब उस कमरे में इकट्ठा थे जहाँ शासी निकाय की सभा होती है। हम लेखन-समिति का इंतज़ार कर रहे थे। हमें यह बताना था कि अनुवादक जिन समस्याओं का सामना करते हैं, उन्हें कैसे हल किया जा सकता है। हम थोड़ा घबराए हुए थे। लेकिन लेखन-समिति के साथ होनेवाली यह सभा इतनी खास क्यों थी? यह बताने से पहले, चलिए मैं आपको थोड़ा-बहुत अपने बारे में बताता हूँ।

क्वीन्सलैंड में मेरा बपतिस्मा हुआ, तस्मानिया में मैंने पायनियर सेवा की और तुवालु, समोआ और फिजी में मिशनरी के तौर पर सेवा की

मेरा जन्म 1955 में, ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड राज्य में हुआ था। कुछ ही समय बाद, मेरी माँ एस्टेल यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करने लगीं। अगले साल उनका बपतिस्मा हो गया। मेरे पिता रॉन ने 13 साल बाद सच्चाई कबूल की और मेरा बपतिस्मा 1968 में, क्वीन्सलैंड के दूर-दराज़ इलाके में हुआ था।

बचपन से ही मुझे किताबें पढ़ने और अपनी और दूसरी भाषाएँ सीखने का बड़ा शौक था। जब हमारा परिवार कहीं घूमने जाता था तो मैं रास्ते में इधर-उधर खूबसूरत नज़ारे देखने के बजाय, कार में पिछली सीट पर बैठा किताब पढ़ता रहता था। यह देखकर मेरे माता-पिता को ज़रूर गुस्सा आता होगा। लेकिन इस शौक से मुझे स्कूल की पढ़ाई में काफी मदद मिली। तस्मानिया द्वीप के ग्लेनओर्की शहर में हाई-स्कूल की पढ़ाई में मुझे कई इनाम मिले।

लेकिन उसी वक्‍त मुझे एक गंभीर फैसला लेना था। क्या मैं वज़ीफा (स्कॉलरशिप) कबूल करके विश्व-विद्यालय पढ़ने जाऊँगा या नहीं? हालाँकि किताबों और भाषा के लिए मेरा प्यार बढ़ता जा रहा था, मगर मेरी माँ ने यहोवा के लिए उससे भी बढ़कर प्यार पैदा करने में मेरी मदद की। उनका यह एहसान मैं कभी नहीं भूल सकता। (1 कुरिं. 3:18, 19) इसलिए माता-पिता की सहमति से मैंने तय किया कि जैसे ही मेरी हाई स्कूल की पढ़ाई खत्म होगी, मैं स्कूल छोड़ दूँगा और पायनियर सेवा शुरू कर दूँगा। जनवरी 1971 में मैंने वैसा ही किया। उस समय मैं 15 साल का था।

अगले आठ साल तक मुझे तस्मानिया राज्य में पायनियर सेवा करने का मौका मिला। उसी दौरान मैंने तस्मानिया की एक खूबसूरत लड़की जेनी एलकॉक से शादी की। फिर चार साल तक हम दोनों ने स्मिथटोन और क्वीन्सटाउन द्वीपों पर खास पायनियर के तौर पर सेवा की।

प्रशांत महासागर के द्वीपों की ओर

सन्‌ 1978 में, हम पहली बार समुंदर पार, पपुआ न्यू गीनी के पोर्ट मोर्ज़बी शहर में अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए गए। मुझे अब भी याद है कि वहाँ एक मिशनरी भाई हीरी मोटू भाषा में भाषण दे रहा था। उस भाई ने भाषण में जो कहा, हालाँकि उसका एक भी शब्द मुझे समझ में नहीं आया, मगर उसके भाषण से मुझे मिशनरी बनने, दूसरी भाषा सीखने और उसकी तरह दूसरी भाषा में भाषण देने का बढ़ावा ज़रूर मिला। आखिरकार मुझे समझ में आ गया कि भाषा के लिए मेरे दिल में जो प्यार है, उसकी मदद से मैं यहोवा की सेवा कैसे कर सकता हूँ।

जब हम वापस ऑस्ट्रेलिया आए, तो हम हैरान रह गए। हमें तुवालु देश के फ्यूनाफ्यूटी द्वीप पर मिशनरी के नाते सेवा करने का न्यौता दिया गया था! इस द्वीप को पहले एलिस द्वीप समूह कहा जाता था। हम जनवरी, 1979 में अपनी नयी ज़िम्मेदारी सँभालने के लिए उस द्वीप पर पहुँच गए। उस वक्‍त पूरे तुवालु में सिर्फ तीन बपतिस्मा-शुदा प्रचारक थे।

तुवालु देश में जेनी के साथ

तुवालुअन भाषा सीखना आसान नहीं था। उस भाषा में सिर्फ एक किताब मौजूद थी, वह थी बाइबल का “नया नियम।” उस भाषा में न तो कोई शब्दकोश था, न ही भाषा सिखाने का कोई इंतज़ाम। इसलिए हमने तय किया कि हम हर दिन करीब 10-20 शब्द सीखने की कोशिश करेंगे। मगर जल्द ही हमें एहसास हुआ कि हम जो शब्द सीख रहे थे, उनमें से ज़्यादातर शब्दों का हम सही मतलब नहीं जानते थे। जैसे, हम लोगों को बताना तो यह चाहते थे कि जादू-टोना गलत है, पर असल में हम उन्हें यह बता रहे होते थे कि तराज़ू और छड़ी इस्तेमाल नहीं करनी चाहिए! लेकिन जो भी हो हमें भाषा सीखनी ही थी, तभी तो हम उन बहुत-से लोगों को बाइबल अध्ययन करा सकते थे, जो हमने शुरू किए थे। इसलिए हमने हार नहीं मानी। उन शुरूआती सालों में हमने जिन लोगों को अध्ययन कराया था, कई सालों बाद उनमें से एक ने कहा, “हम इस बात से बेहद खुश हैं कि अब आप हमारी भाषा बोल सकते हैं। शुरू-शुरू में हमें समझ में ही नहीं आता था कि आप कहना क्या चाहते हैं!”

लेकिन हम ऐसे माहौल में रह रहे थे, जिससे हमें भाषा जल्दी सीखने में मदद मिली। वहाँ हमें किराए पर कोई मकान नहीं मिला। इसलिए आखिरकार हमें एक साक्षी परिवार के साथ रहना पड़ा जो मुख्य गाँव में रहते थे। इसका मतलब था उस भाषा और गाँव के रहन-सहन में पूरी तरह डूब जाना। कई सालों तक अँग्रेज़ी हमारी ज़बान पर ही नहीं आयी थी, इसलिए तुवालुअन हमारी मुख्य भाषा बन गयी थी।

जल्द ही बहुत-से लोग सच्चाई में दिलचस्पी दिखाने लगे। लेकिन हम उनके साथ अध्ययन करें तो कैसे करें? उस भाषा में हमारे पास कोई किताब या पत्रिका तो थी ही नहीं। वे अपना निजी अध्ययन कैसे करते? और जब वे सभाओं में आने लगे, तो वे गीत कैसे गाते? वे सभाओं में कौन-सी किताब या पत्रिका इस्तेमाल करते? कैसे वे सभाओं की तैयारी करते? जब उनकी भाषा में कोई साहित्य नहीं है, तो वे बपतिस्मे के काबिल कैसे बनते? इन नेकदिल लोगों को यहोवा के बारे में उनकी भाषा में सिखाने की ज़रूरत थी! (1 कुरिं. 14:9) हम सोचते थे, ‘क्या कभी तुवालुअन भाषा में कोई किताब या पत्रिका छपेगी, जिसे 15,000 से भी कम लोग बोलते हैं?’ इन सवालों के जवाब यहोवा ने दिए और इस तरह उसने दो बातें साबित कीं: (1) वह चाहता है कि “दूर दूर के द्वीपों में भी” उसके बारे में लोग सीखें और (2) वह चाहता है कि जो लोग दुनिया की नज़रों में “दीन और कंगाल” हैं, वे उसके नाम में शरण लें।—यिर्म. 31:10; सप. 3:12.

हमारे साहित्य का अनुवाद

सन्‌ 1980 में, शाखा दफ्तर ने हमें तुवालुअन भाषा में हमारी किताबों-पत्रिकाओं का अनुवाद करने की ज़िम्मेदारी सौंपी। इस काम के लिए हम खुद को बिलकुल काबिल नहीं समझते थे। (1 कुरिं. 1:28, 29) शुरू में हमने सरकार से एक ऐसी पुरानी मशीन खरीदी, जिससे हम अपनी सभाओं के लिए जानकारी छापते थे। यहाँ तक कि हमने सत्य जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब का भी तुवालुअन भाषा में अनुवाद किया और इसी छोटी मशीन से उसकी छपाई की। मुझे अब भी याद है कि उस मशीन में इस्तेमाल होनेवाली स्याही की कितनी तेज़ महक आती थी और वहाँ की सड़ी गरमी में सारे साहित्य की हाथ से छपाई करना कितना मुश्किल होता था। उस वक्‍त हम जहाँ रहते थे वहाँ बिजली भी नहीं थी!

तुवालुअन भाषा में अनुवाद करना काफी चुनौती-भरा था, क्योंकि इस भाषा में अनुवाद करने के लिए हमारे पास न तो कोई शब्दकोश था, न ही कोई किताब। लेकिन कभी-कभी हमें ऐसे मदद मिल जाती थी जिसकी हमें उम्मीद भी नहीं होती थी। एक बार सुबह प्रचार करते वक्‍त मैं गलती से उस आदमी के घर जा पहुँचा जो सच्चाई का विरोध करता था। वह घर-मालिक एक बुज़ुर्ग आदमी था और एक शिक्षक रह चुका था। उसने फौरन मुझसे कहा ‘मैंने आपसे कहा था न इस घर में दोबारा मत आना।’ फिर उसने कहा, “मैं बस आपसे एक बात कहना चाहता हूँ। आप उस तरह अनुवाद नहीं करते जैसे तुवालु के लोग बात करते हैं।” मैंने इस बारे में दूसरों से भी पूछा और पाया कि वह सही कह रहा था। इसलिए हमने अनुवाद में ज़रूरी बदलाव किए। मैं हैरान था कि कैसे यहोवा ने एक विरोधी के ज़रिए हमारी मदद की। ज़रूर उस आदमी ने हमारा साहित्य पढ़ा होगा!

तुवालुअन भाषा में राज समाचार नं. 30

तुवालुअन में आम जनता को बाँटने के लिए जो साहित्य सबसे पहले छापा गया, वह था स्मारक का न्यौता। इसके बाद राज समाचार नंबर 30 ट्रैक्ट अँग्रेज़ी ट्रैक्ट के साथ ही निकाला गया। लोगों को उनकी भाषा में कोई साहित्य देना हमारे लिए क्या ही खुशी की बात थी! धीरे-धीरे कुछ ब्रोशर, यहाँ तक कि कुछ किताबें भी तुवालुअन भाषा में छापी गयीं। सन्‌ 1983 से ऑस्ट्रेलिया के शाखा-दफ्तर ने हर तीन महीने में, 24 पेजवाली प्रहरीदुर्ग पत्रिका निकालनी शुरू की। इसका मतलब हमारे पास हर हफ्ते औसतन सात पैराग्राफ अध्ययन करने के लिए कुछ जानकारी होती थी। वहाँ के लोगों पर इसका क्या असर हुआ? तुवालु के लोग पढ़ना पसंद करते हैं। इसलिए हमारी किताबें-पत्रिकाएँ बहुत मशहूर हो गयीं। जब हमारी कोई नयी किताब या पत्रिका छपती थी तो सरकारी रेडियो स्टेशन पर उसकी घोषणा की जाती थी और कभी-कभी तो यह खबर समाचार की सुर्खियाँ बन जाती थी। *

अनुवाद काम की शुरूआत कागज़ और कलम से हुई थी। लेकिन बाद में हाथ से कागज़ों पर लिखी जानकारी टाइप की जाने लगी, वह भी एक बार नहीं कई बार टाइप की जाती थी। तब वह जानकारी ऑस्ट्रेलिया के शाखा-दफ्तर को छपाई के लिए भेजी जाती थी। एक वक्‍त ऐसा था जब शाखा दफ्तर में दो बहनें कंप्यूटर पर जानकारी टाइप करती थीं, जबकि उन्हें तुवालुअन नहीं आती थी। इस तरह दो व्यक्‍तियों से टाइप करवाने और दोनों के ज़रिए टाइप की गयी जानकारी की एक-दूसरे से तुलना करने की वजह से बहुत कम गलतियाँ होती थीं। जानकारी को छपाई के लिए तैयार करने, यानी जानकारी को तसवीरों के साथ तरतीब से बिठाने के बाद, हवाई डाक के ज़रिए हमारे पास भेजा जाता था, ताकि हम उसकी जाँच करें। फिर हम उसकी जाँच करके वापस छपाई के लिए शाखा दफ्तर भेज देते थे।

आज कितना कुछ बदल गया है! अब अनुवाद करनेवाली टीम जानकारी को सीधे कंप्यूटर पर टाइप करती हैं। ज़्यादातर जगहों पर, सही की गयी जानकारी वहीं-के-वहीं छपाई के लिए तैयार की जाती है। वे ऐसी फाइलें तैयार करते हैं जिन्हें इंटरनेट के ज़रिए छपाई करनेवाले शाखा दफ्तरों को भेजा जाता है। अब जानकारी भेजने के लिए पागलों की तरह डाक-घर के चक्कर नहीं लगाने पड़ते।

और भी ज़िम्मेदारियाँ

जैसे-जैसे साल बीतते गए मुझे और जेनी को प्रशांत महासागर के अलग-अलग द्वीपों में ज़िम्मेदारियाँ मिलती गयीं। सन्‌ 1985 में, हमें तुवालु से समोआ के शाखा दफ्तर सेवा करने के लिए भेजा गया। वहाँ हमने समोअन, टोंगन और तोकेलाउन भाषाओं के अनुवाद काम में मदद की। इसके अलावा, हम तुवालुअन भाषा के लिए अब भी काम कर रहे थे। * फिर 1996 में, हमें फिजी के शाखा दफ्तर में इसी तरह के काम के लिए भेजा गया। वहाँ हमें फीजी, किरिबाती, नाऊरूअन, रोटूमन और तुवालुअन भाषाओं में हो रहे अनुवाद काम में मदद करने का मौका मिला।

तुवालुअन साहित्य से दूसरों की मदद करते हुए

हमारे साहित्य का अनुवाद करनेवाले भाई-बहन जो जज़्बा दिखाते हैं, उसे देखकर मैं हमेशा हैरान रह जाता हूँ। यह काम थोड़ा उबाऊ और थका देनेवाला हो सकता है। मगर ये वफादार भाई-बहन यह ज़ाहिर करने की कोशिश करते हैं कि वे वही चाहते हैं जो यहोवा चाहता है। यानी यह कि राज की खुशखबरी “हर राष्ट्र और गोत्र और भाषा और जाति के लोगों” को सुनायी जाए। (प्रका. 14:6) उदाहरण के लिए, जब टोंगन भाषा में पहली बार प्रहरीदुर्ग पत्रिका का अनुवाद करने का इंतज़ाम किया गया, तो मैं टोंगा द्वीप समूह के सभी प्राचीनों से मिला। मैंने उनसे पूछा कि क्या आपमें से कोई अनुवाद काम सीखना चाहेगा। उनमें से एक प्राचीन, कारीगर (मकैनिक) के तौर पर अच्छी खासी नौकरी कर रहा था। उसने कहा कि वह कल ही अपनी नौकरी छोड़ने और फौरन अनुवादक के तौर पर काम शुरू करने के लिए तैयार है। उसका यह जज़्बा मेरे दिल को छू गया! वह बाल-बच्चेवाला आदमी था। उसने ज़रा भी नहीं सोचा कि उसका परिवार कैसे चलेगा। लेकिन यहोवा ने उसकी और उसके परिवार की देखभाल की और वह भाई कई सालों तक अनुवाद काम करता रहा।

पूरी लगन से काम करनेवाले अनुवादक वही नज़रिया दिखाते हैं जो नज़रिया शासी निकाय के सदस्यों का है। शासी निकाय उन भाषाओं के लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों का भी पूरा खयाल रखता है, जो भाषाएँ कम लोग बोलते हैं। मिसाल के लिए, एक बार यह सवाल उठा कि क्या तुवालुअन भाषा में किताबें-पत्रिकाएँ छापने के लिए इतनी मेहनत करने का कोई फायदा है। इसका शासी निकाय ने जो जवाब दिया, उससे मेरा बहुत हौसला बढ़ा। उन्होंने कहा, “हमें तो ऐसी कोई वजह नहीं दिखायी देती कि तुवालुअन में अनुवाद काम रोक दिया जाए। हालाँकि दूसरी भाषा के समूहों के मुकाबले, तुवालुअन भाषा बोलनेवाले कम लोग हो सकते हैं, फिर भी उन्हें उनकी भाषा में खुशखबरी सुनायी जानी चाहिए।”

समुंदर किनारे किसी को बपतिस्मा देते हुए

सन्‌ 2003 में, मुझे और जेनी को फिजी के शाखा दफ्तर के अनुवाद विभाग से न्यू यॉर्क के पैटरसन में, अनुवाद सेवा विभाग में भेजा गया। ऐसा लग रहा था जैसे मेरा कोई सपना सच हो गया है! वहाँ हम उस टीम का हिस्सा बने जो और भी ज़्यादा भाषाओं में हमारे साहित्य का अनुवाद काम बढ़ाने में मदद करती है। अगले कोई दो साल तक हमें अलग-अलग देशों में जाकर अनुवाद टीमों को तालीम देकर उनकी मदद करने का सम्मान मिला।

बहुत अहम फैसले

चलिए मैं आपको फिर से उस खास सभा के बारे में बताता हूँ जिसका मैंने शुरूआत में ज़िक्र किया था। सन्‌ 2000 के आते-आते, शासी निकाय ने देखा कि पूरी दुनिया में अनुवाद टीमों को उनके काम के बारे में और भी सिखाया जाना चाहिए। अभी तक ज़्यादातर अनुवादकों को इस काम के बारे में बहुत कम सिखाया गया था। लेखन-समिति के साथ हुई उस सभा के बाद शासी निकाय ने तय किया कि पूरी दुनिया के सभी अनुवादकों को उनके काम के बारे में सिखाया जाना चाहिए। यह ऐसा इंतज़ाम था, जिसके तहत अनुवादकों को सिखाया जाता कि अँग्रेज़ी में जो लेख आता है उसे कैसे समझना है, अनुवाद में उठनेवाली समस्याएँ कैसे सुलझानी हैं और टीम के तौर पर साथ मिलकर कैसे काम करना है।

अनुवादों को इस तरह की शिक्षा देने का क्या नतीजा निकला है? एक बात तो यह कि हमारे साहित्य का अनुवाद काफी बेहतर हुआ है। इसके अलावा, आज बहुत-सी भाषाओं में हमारे साहित्य का अनुवाद होता है। सन्‌ 1979 में जब हम पहली बार अपनी मिशनरी सेवा के लिए गए थे, उस वक्‍त प्रहरीदुर्ग पत्रिका सिर्फ 82 भाषाओं में छपती थी। ज़्यादातर भाषाओं में यह पत्रिका अँग्रेज़ी में निकलने के कई महीनों बाद निकलती थी। लेकिन अब प्रहरीदुर्ग पत्रिका 240 से ज़्यादा भाषाओं में निकलती है और ज़्यादातर भाषाओं में अँग्रेज़ी के साथ ही आती है। आज आध्यात्मिक भोजन 700 से भी ज़्यादा भाषाओं में मौजूद है, फिर चाहे वह किताबों-पत्रिकाओं के रूप में हो या किसी और रूप में। क्या ही ज़बरदस्त तरक्की! सालों पहले इस बारे में हम बस सपने ही देख सकते थे।

सन्‌ 2004 में शासी निकाय ने एक और अहम फैसला लिया, वह यह कि जितनी जल्दी हो सके ज़्यादा-से-ज़्यादा भाषाओं में नयी दुनिया अनुवाद बाइबल हो। इस फैसले की वजह से आज बहुत-से लोग अपनी भाषा में नयी दुनिया अनुवाद बाइबल पढ़ सकते हैं। सन्‌ 2014 तक पूरी बाइबल या उसके कुछ हिस्से 128 भाषाओं में छापे जा चुके हैं। इनमें दक्षिण प्रशांत महासागर के द्वीपों पर बोली जानेवाली कई भाषाएँ भी शामिल हैं।

तुवालुअन में नयी दुनिया अनुवाद मसीही यूनानी शास्त्र रिलीज़ करते हुए

मेरी ज़िंदगी की कई बातें मेरे लिए मीठी यादें बन गयीं, जिनमें एक यह कि मुझे 2011 में तुवालु में रखे गए अधिवेशन में हाज़िर होने का सम्मान मिला। उस देश में कई महीनों से ज़बरदस्त सूखा पड़ा था। ऐसा लग रहा था कि अधिवेशन नहीं हो पाएगा। मगर जिस शाम हम वहाँ पहुँचे, उसी शाम ज़बरदस्त बारिश से सूखी ज़मीन खिल उठी और अधिवेशन भी हुआ। उस अधिवेशन में मुझे तुवालुअन भाषा में नयी दुनिया अनुवाद मसीही यूनानी शास्त्र रिलीज़ करने का सम्मान मिला। यह एक ऐसी भाषा है जिसमें बहुत कम प्रचारक हैं, फिर भी उन्हें यह खूबसूरत तोहफा मिला। अधिवेशन के आखिर में फिर से मूसलाधार बारिश हुई। इस तरह कार्यक्रम खत्म होने पर सभी को बहुतायत में सच्चाई का पानी और बारिश का पानी मिला!

सन्‌ 2014 में, ऑस्ट्रेलिया के टाउन्सविले शहर में एक अधिवेशन में अपने माता-पिता रॉन और एस्टेल का इंटरव्यू लेते हुए

मगर अफसोस, इस यादगार मौके को देखने के लिए मेरी प्यारी पत्नी जेनी ज़िंदा नहीं थी। जेनी ने 35 से भी ज़्यादा सालों तक वफादारी से मेरा साथ दिया था। वह दस सालों से स्तन कैंसर से लड़ रही थी। आखिरकार 2009 में उसकी मौत हो गयी। जब उसका पुनरुत्थान होगा तो वह ज़रूर यह सुनकर खुशी से फूली नहीं समाएगी कि तुवालुअन में बाइबल रिलीज़ हुई थी।

उसके बाद यहोवा ने मुझे एक और खूबसूरत पत्नी दी, लोरेनी सिकीवो। लोरेनी और जेनी दोनों ने फिजी बेथेल में साथ-साथ काम किया था। लोरेनी फिजीयन भाषा में अनुवादक रही है। मुझे फिर से एक वफादार पत्नी मिल गयी। हम दोनों यहोवा की सेवा करते हैं और हम दोनों के दिल में भाषा के लिए प्यार है।

फिजी में, लोरेनी के साथ गवाही देते हुए

जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ कि हमारा प्यारा पिता यहोवा कैसे हमेशा सब भाषाओं के लोगों की ज़रूरतों का खयाल रखता है, फिर चाहे उस भाषा के लोग थोड़े हों या ज़्यादा, तो मेरा बहुत हौसला बढ़ता है। (भज. 49:1-3) जब लोगों को अपनी भाषा में कोई साहित्य मिलता है या फिर वे उस भाषा में यहोवा की स्तुति करते हैं जो उनके दिल के करीब होती है, तो उनका चेहरा खुशी से चमक उठता है। यह देखकर मैं समझ जाता हूँ कि यहोवा वाकई उन लोगों से कितना प्यार करता है। (प्रेषि. 2:8, 11) तुवालुअन बोलनेवाले एक बुज़ुर्ग भाई के शब्द आज भी मेरे कानों में गूँजते रहते हैं। उन्होंने जब पहली बार अपनी भाषा में राज-गीत गाया, तो कहने लगे, “मेरे खयाल से आपको शासी निकाय को बताना चाहिए कि तुवालुअन में ये गाने अँग्रेज़ी से ज़्यादा अच्छे लगते हैं।”

सितंबर 2005 में, मुझे यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के सदस्य के तौर पर सेवा करने का सम्मान मिला, एक ऐसा सम्मान जिसकी मैंने कभी उम्मीद भी नहीं की थी। हालाँकि मैं अब अनुवाद काम तो नहीं करता, फिर भी मैं यहोवा का शुक्रिया अदा करता हूँ कि वह मुझे दुनिया-भर में हो रहे अनुवाद काम में मदद करने का अब भी मौका दे रहा है। यह जानकर क्या ही खुशी होती है कि यहोवा सभी लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों का खयाल रखता है, उनका भी जो प्रशांत महासागर के बीच दूर-दराज़ के द्वीपों पर रहते हैं! जी हाँ, भजनहार ने कहा, “यहोवा राजा हुआ है, पृथ्वी मगन हो; और द्वीप जो बहुतेरे हैं, वह भी आनन्द करें!”—भज. 97:1.

^ पैरा. 18 हमारे साहित्य का लोगों पर क्या असर हुआ, यह जानने के लिए 15 दिसंबर, 2000 की प्रहरीदुर्ग का पेज 32; 1 अगस्त, 1988 की प्रहरीदुर्ग का पेज 22 (अँग्रेज़ी) और 22 दिसंबर, 2000 की सजग होइए! का पेज 9 (अँग्रेज़ी) देखिए।

^ पैरा. 22 समोआ में हो रहे अनुवाद काम के बारे में ज़्यादा जानने के लिए 2009 की इयरबुक के पेज 120-121, 123-124 देखिए।