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प्रकाशितवाक्य की किताब—इसमें दी बातों का क्या मतलब है?

प्रकाशितवाक्य की किताब—इसमें दी बातों का क्या मतलब है?

शास्त्र से जवाब

 बाइबल की आखिरी किताब प्रकाशितवाक्य का यूनानी नाम है, ए-पो-क-लि-प्सिस (एपोकलिप्स), जिसका मतलब है, “खुलासा होना” या “प्रकट करना।” इस नाम से पता चलता है कि प्रकाशितवाक्य किताब में क्या बताया गया है। इसमें उन बातों का खुलासा किया गया है, जो पहले एक तरह से रहस्य थीं। इसमें भविष्य में होनेवाली घटनाओं के बारे में भी बताया गया है, जिनमें से कई भविष्यवाणियों का पूरा होना बाकी है।

प्रकाशितवाक्य किताब की एक झलक

प्रकाशितवाक्य किताब समझने के लिए ध्यान में रखनेवाली कुछ बातें

  1.   जो परमेश्‍वर की सेवा करते हैं, उनके लिए इस किताब में दी गयी बातों का मतलब डरावना या खौफनाक नहीं, बल्कि खुशी का संदेश है। हालाँकि बहुत-से लोग शब्द एपोकलिप्स को एक बड़े संकट से जोड़ते हैं, लेकिन प्रकाशितवाक्य किताब की शुरूआत में और आखिर में कहा गया है कि जो इसे पढ़ते हैं, समझते हैं और इसमें दी बातें लागू करते हैं, वे सुखी होंगे।—प्रकाशितवाक्य 1:3; 22:7.

  2.   इस किताब में बहुत-सी ‘निशानियाँ’ या चिन्ह दिए गए हैं, जिनके बारे में यह नहीं मान लेना चाहिए कि सचमुच में ऐसा होगा।—प्रकाशितवाक्य 1:1.

  3.   इस किताब के बहुत-से किरदारों की पहचान और निशानियों का मतलब बाइबल की दूसरी किताबों में पहले ही बताया गया है:

  4.   सारे दर्शनों में बतायी गयी बातें “प्रभु के दिन” के दौरान होती हैं। इस दिन की शुरूआत 1914 में हुई, तभी परमेश्‍वर का राज शुरू हुआ और यीशु राजा के तौर पर राज करने लगा। (प्रकाशितवाक्य 1:10) इसका मतलब है कि प्रकाशितवाक्य में बतायी गयी बातें खास तौर पर हमारे दिनों में पूरी होंगी।

  5.   प्रकाशितवाक्य किताब समझने के लिए हमें वही बातें मदद करेंगी, जो बाइबल की बाकी किताबें समझने में मदद करती हैं, जैसे परमेश्‍वर से मिलनेवाली बुद्धि और वे लोग जो इसे समझते हैं।—प्रेषितों 8:26-39; याकूब 1:5.