इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

सच्ची कामयाबी पाने के छः गुर

सच्ची कामयाबी पाने के छः गुर

सच्ची कामयाबी पाने के छः गुर

सच्ची कामयाबी का मतलब है, सबसे बेहतरीन तरीके से ज़िंदगी जीना। इसके लिए ज़रूरी है कि एक इंसान उस मकसद के मुताबिक जीए जो परमेश्‍वर ने हमारे लिए ठहराया है, साथ ही उसके बताए स्तरों को माने। ऐसी ज़िंदगी जीनेवाले हर शख्स के बारे में बाइबल कहती है: “वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।”भजन 1:3.

माना कि हम असिद्ध हैं और गलतियाँ करते हैं, फिर भी हम मोटे तौर पर ज़िंदगी में कामयाब हो सकते हैं! क्या आप नहीं चाहेंगे कि आपको भी ऐसी कामयाबी मिले? अगर हाँ, तो आगे दिए बाइबल के छः सिद्धांत आपकी मदद कर सकते हैं। और फिर आपको पूरा यकीन हो जाएगा कि बाइबल की शिक्षाएँ वाकई परमेश्‍वर की तरफ से हैं और बुद्धि-भरी हैं।—याकूब 3:17.

1 पैसे के बारे में सही नज़रिया रखिए

“रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने . . . अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है।” (1 तीमुथियुस 6:10) गौर कीजिए कि समस्या की जड़ पैसा नहीं है, क्योंकि हमें खुद की और अपने परिवार की देखभाल करने के लिए पैसों की ज़रूरत पड़ती है। इसके बजाय, समस्या की जड़ पैसों का लोभ है। और देखा गया है कि इसी लोभ की वजह से पैसा, इंसान का मालिक या ईश्‍वर बन जाता है।

जैसा कि हमने पहले लेख में देखा, कई लोग सोचते हैं कि खूब सारा पैसा होना ही कामयाबी की निशानी है, मगर असल में धन-दौलत एक धोखा है। इसके पीछे भागने से लोगों को कामयाबी के बजाय नाकामी हाथ लगती है और उन्हें दुख के आँसू बहाने पड़ते हैं। मिसाल के लिए, लोग अकसर धन के देवता की वेदी पर अपने सारे रिश्‍ते और दोस्ती को बलि चढ़ा देते हैं। दूसरे ऐसे हैं, जिनका काम या चिंता की वजह से रातों की नींद उड़ जाती है। बाइबल की एक किताब, सभोपदेशक 5:12 कहता है: “परिश्रम करनेवाला चाहे थोड़ा खाए, या बहुत, तौभी उसकी नींद सुखदाई होती है; परन्तु धनी के धन के बढ़ने के कारण उसको नींद नहीं आती।”

पैसा सिर्फ एक बेरहम मालिक ही नहीं, बल्कि बड़ा धोखेबाज़ भी होता है। यीशु मसीह ने भी ‘धन के धोखे’ की बात कही थी। (मरकुस 4:19) यानी, हमें लगता है कि धन से हमें खुशी मिलेगी, लेकिन ऐसा होता नहीं। उलटा वह पैसे की भूख बढ़ाता है। सभोपदेशक 5:10 (NHT) कहता है: “जो रुपये-पैसे से प्रेम करता है वह रुपये-पैसे से संतुष्ट नहीं होगा।”

चंद शब्दों में कहें तो पैसे का लोभ करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है। इससे निराशा और नाकामी के सिवा कुछ नहीं मिलता। यहाँ तक कि एक इंसान जुर्म की अंधी गली में भी जा सकता है। (नीतिवचन 28:20) लेकिन सच्ची कामयाबी और खुशी का दारोमदार प्यार, दरियादिली, दूसरों को माफ करने के रवैए, शुद्ध चरित्र और परमेश्‍वर के साथ एक अच्छे रिश्‍ते पर है।

2 दरियादिली दिखाइए

“लेने से देने में अधिक सुख है।” (प्रेरितों 20:35, इज़ी-टू-रीड वर्शन) कभी-कभार दूसरों को कुछ देने से हमें सिर्फ कुछ पल की खुशी मिलती है। लेकिन अगर हम स्वभाव से दरियादिल बनें, तो हम हमेशा खुश रहेंगे। बेशक, दरियादिली कई तरीकों से दिखायी जा सकती है। मगर इसका सबसे बेहतरीन तरीका है, दूसरों के साथ वक्‍त बिताना और उनकी खातिर कुछ करना।

खोजकर्ता स्टीफन जी. पोस्ट ने निस्वार्थ भावना, खुशहाली और स्वास्थ्य पर लिए गए कई अध्ययनों की जाँच की। इसके बाद, वे इस नतीजे पर पहुँचे कि जो व्यक्‍ति दूसरों के लिए परवाह दिखाता है और उनकी मदद करता है, वह ज़्यादा साल जीता है, खुश रहता है, शारीरिक और दिमागी तौर पर सेहतमंद रहता है और उसके घोर हताशा के शिकार होने की गुंजाइश बहुत कम होती है।

इसके अलावा, दरियादिल इंसान को कभी किसी चीज़ की घटी नहीं होती। नीतिवचन 11:25 कहता है: “उदार प्राणी हृष्ट पुष्ट हो जाता है, और जो औरों की खेती सींचता है, उसकी भी सींची जाएगी।” इन शब्दों के मुताबिक, जो इंसान यह मानकर चलता है कि नेकी कर दरिया में डाल, यानी जो एहसान के बदले एहसान की उम्मीद नहीं करता, उससे सभी लोग खासकर परमेश्‍वर प्यार करता है और उसकी कदर करता है।—इब्रानियों 13:16.

3 दिल खोलकर माफ कीजिए

“यदि किसी को किसी से कोई शिकायत हो, तो एक दूसरे को क्षमा करें। प्रभु [यहोवा] ने आप लोगों को क्षमा कर दिया। आप लोग भी ऐसा ही करें।” (कुलुस्सियों 3:13, बुल्के बाइबिल) आजकल कोई किसी को माफ नहीं करता। इसके उलट, लोग बदला लेने पर उतारू हो जाते हैं। नतीजा? जब किसी की बेइज़्ज़ती की जाती है या उस पर हाथ उठाया जाता है, तो वह ईंट का जवाब पत्थर से देता है।

मगर बात शायद यहीं तक न रुके। कनाडा में, माँट्रियल शहर के द गज़ेट अखबार में बताया गया है कि “जब 18 से 30 साल के 4,600 से भी ज़्यादा लोगों का अध्ययन किया गया, तो पाया गया कि जो लोग जितना ज़्यादा तुनक मिज़ाज़ और दूसरों का बुरा चाहनेवाले होते हैं,” उतना ज़्यादा उनके फेफड़ों की बुरी गत होती है। कुछ लोगों के फेफड़ों की हालत तो सिगरेट पीनेवालों के फेफड़ों से भी बदतर होती है! इससे साफ है कि माफ करने का रवैया न सिर्फ हमें दूसरों के साथ मधुर रिश्‍ता बनाए रखने में मदद देता है, बल्कि हमारी सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है।

आप माफ करने का रवैया कैसे बढ़ा सकते हैं? पूरी ईमानदारी से खुद की जाँच करने के ज़रिए। सोचिए: क्या आप कभी दूसरों को ठेस नहीं पहुँचाते? और जब वे आपको माफ कर देते हैं, तो क्या आपको खुशी नहीं होती? तो क्यों न आप भी हमेशा दिल खोलकर दूसरों को माफ करें? (मत्ती 18:21-35) इसके लिए ज़रूरी है कि हम आत्म-संयम का गुण पैदा करें। अपना गुस्सा ठंडा करने के लिए “दस तक गिनिए” या कोई और तरकीब अपनाइए। याद रखिए, आत्म-संयम में काफी ताकत होती है। नीतिवचन 16:32 (NHT) कहता है: “विलम्ब से क्रोध करने वाला तो वीर योद्धा से . . . उत्तम है।” गौर कीजिए, यहाँ लिखा है कि आत्म-संयम रखनेवाला व्यक्‍ति ‘वीर योद्धा से उत्तम’ है। क्या यह कामयाबी की निशानी नहीं?

4 परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक चलिए

“यहोवा की आज्ञा निर्मल है, वह आंखों में ज्योति ले आती है।” (भजन 19:8) सरल शब्दों में कहें तो परमेश्‍वर के स्तर हमारे फायदे के लिए हैं। इनके मुताबिक जीने से हमें शारीरिक और मानसिक तौर पर फायदा होता है। साथ ही, हमारा दिमाग स्वस्थ रहता है। हम कई बुरी आदतों से भी बचे रहते हैं, जिनमें ड्रग्स लेना, पियक्कड़पन, बदचलनी करना और अश्‍लील तसवीरें (पोर्नोग्राफी) देखना शामिल है। (2 कुरिन्थियों 7:1; कुलुस्सियों 3:5) इन बुरी आदतों के बहुत-से भयानक अंजाम होते हैं। जैसे, जुर्म की दुनिया में कदम रखना, तंगहाली झेलना, परिवार का तबाह होना, मानसिक समस्याओं का शिकार होना, यहाँ तक कि बेवक्‍त मौत मरना।

जो लोग परमेश्‍वर के स्तरों पर चलते हैं, वे न सिर्फ बुरी आदतों और उनके अंजामों से बचे रहते हैं, बल्कि उन्हें और भी फायदे होते हैं। उनका सभी के साथ अच्छा रिश्‍ता होता है, उनका आत्म-सम्मान बना रहता है और उन्हें मन की शांति मिलती है। यशायाह 48:17,18 में परमेश्‍वर कहता है: “[मैं] तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं। भला होता कि तू ने मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुना होता! तब तेरी शान्ति नदी के समान और तेरा धर्म समुद्र की लहरों के नाईं होता।” जी हाँ, हमारा सिरजनहार हमारा भला चाहता है। वह हमें सच्ची कामयाबी के ‘मार्ग पर ले जाना’ चाहता है।

5 बिना स्वार्थ के प्यार जताइए

“प्रेम से उन्‍नति होती है।” (1 कुरिन्थियों 8:1) ज़रा सोचिए, बगैर प्यार के ज़िंदगी कैसी होती? एकदम बेमाने और सूनी। मसीही प्रेरित पौलुस ने ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखा: “यदि मैं [दूसरों के लिए] . . . प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं। . . . मुझे कुछ भी लाभ नहीं।”—1 कुरिन्थियों 13:2,3.

यहाँ जिस प्रेम की बात की गयी है, वह रोमानी प्यार नहीं है, हालाँकि इसकी भी अहमियत होती है। इसके बजाय, यहाँ जिस प्यार का ज़िक्र किया गया है, वह और भी अनमोल होता है और हमेशा कायम रहता है। यही नहीं, यह परमेश्‍वर के सिद्धांतों पर आधारित होता है। * (मत्ती 22:37-39) इस प्यार में किसी तरह का स्वार्थ नहीं होता और यह दूसरों की खातिर अच्छे काम करने के ज़रिए जताया जाता है। पौलुस ने आगे इस प्यार की कई खासियतें बतायीं। जैसे, यह प्यार हमें धीरजवंत और कृपालु होने, बिना स्वार्थ के लोगों की भलाई करने और दूसरों की गलतियों पर झुँझलाने के बजाय उन्हें माफ करने के लिए उकसाता है। इसके अलावा, यह हमें उभारता है कि हम किसी से जलन न रखें, शेखी न बघारें, घमंड से फूल न जाएँ। इस तरह के प्यार से सभी की उन्‍नति भी होती है। सबसे बढ़कर, यह प्यार हमें दूसरों के साथ, खासकर अपने परिवारवालों के साथ अच्छा रिश्‍ता बनाए रखने में मदद देता है।—1 कुरिन्थियों 13:4-8.

परिवार में माता-पिता अपने बच्चों के लिए प्यार कैसे दिखा सकते हैं? पहली बात, उन्हें यह बताकर कि वे उन्हें कितना चाहते हैं। दूसरी बात, उन्हें यह साफ-साफ समझाकर कि नैतिकता के मामले में बाइबल के उसूल क्या हैं और यह भी कि उन्हें कैसा व्यवहार करना चाहिए। जब बच्चों की परवरिश इस तरह के माहौल में की जाती है, तो वे सुरक्षित महसूस करते हैं और ऐसे परिवार में फल-फूल पाते हैं, जिसमें एकता और मज़बूती होती है। उन्हें लगता है कि उनके माँ-बाप वाकई उनसे प्यार करते हैं और उनकी कदर करते हैं।—इफिसियों 5:33–6:4; कुलुस्सियों 3:20.

अमरीका में, जैक नाम के एक जवान की परवरिश ऐसे परिवार में हुई, जो बाइबल के सिद्धांतों पर चलता है। जब वह अपने परिवार से अलग रहने लगा, तो उसने अपने माता-पिता को एक खत लिखा। उसमें उसने कहा: “मैंने हमेशा बाइबल की यह आज्ञा मानने की कोशिश की है, ‘अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, जिससे तेरा भला हो।’ (व्यवस्थाविवरण 5:16) इस वजह से मेरी ज़िंदगी काफी खुशहाल रही है। और आज, मैं इस बात को और भी अच्छी तरह समझ पाया हूँ कि यह सब आपके प्यार और आपकी लगन का नतीजा है। आपने मुझे पाल-पोसकर बड़ा करने में जो दिन-रात मेहनत की और कदम-कदम पर जो साथ दिया, उन सब के लिए आपका लाख-लाख शुक्रिया!” अगर आप एक माँ या पिता हैं और आपको अपने बच्चे से ऐसा ही एक खत मिलता, तो आपको कैसा लगता? क्या यह खत पढ़कर आपका दिल बाग-बाग नहीं हो जाता?

सिद्धांतों पर आधारित प्यार की एक और खासियत है कि यह “सत्य से आनन्दित होता है।” सत्य का मतलब है, परमेश्‍वर के बारे में सच्चाई, जो बाइबल में पायी जाती है। (1 कुरिन्थियों 13:6; यूहन्‍ना 17:17) इसे समझने के लिए आइए एक उदाहरण लें। फर्ज़ कीजिए, एक शादीशुदा जोड़े की ज़िंदगी में कुछ समस्याएँ हैं। ऐसे में, वे दोनों मिलकर मरकुस 10:9 में दर्ज़ यीशु की कही बात पढ़ने का फैसला करते हैं। उसमें लिखा है: “जिसे परमेश्‍वर ने [शादी के बंधन में] जोड़ा है उसे मनुष्य अलग न करे।” यह आयत पढ़ने के बाद, उन्हें अपने दिल की जाँच करने की ज़रूरत है। क्या वे ‘बाइबल के इस सत्य से आनन्दित होंगे’? क्या वे शादी के बंधन को पवित्र मानेंगे, जैसे परमेश्‍वर उसे पवित्र मानता है? क्या वे प्यार की भावना दिखाते हुए अपनी समस्याएँ सुलझाने के लिए तैयार रहेंगे? अगर वे ऐसा करें, तो वे अपनी शादीशुदा ज़िंदगी कामयाब बना सकेंगे और इसका जो नतीजा निकलेगा, उससे वे आनंदित होंगे।

6 अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत रहिए

‘खुश हैं वे जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत हैं।’ (मत्ती 5:3, NW) इंसानों में आध्यात्मिक बातें समझने और उनकी कदर करने की काबिलीयत होती है, जबकि जानवर इस काबिल नहीं होते। इसलिए हम अकसर ऐसे सवाल पूछते हैं: हमारी ज़िंदगी का मकसद क्या है? क्या कोई सिरजनहार है? मरने पर हमारा क्या होता है? हमारा आनेवाला कल कैसा होगा?

दुनिया के लाखों नेकदिल लोगों ने पाया है कि इन सारे सवालों के जवाब बाइबल में दिए गए हैं। यह बात अच्छी तरह समझने के लिए, आखिरी सवाल को लीजिए: हमारा आनेवाला कल कैसा होगा? यह जानने के लिए पहले हमें यह जानना होगा कि परमेश्‍वर ने इंसानों के लिए क्या मकसद ठहराया है। उसका मकसद है कि यह धरती एक फिरदौस बन जाए और ऐसे लोगों से आबाद हो, जो परमेश्‍वर से प्यार करते हैं और उसके स्तरों के मुताबिक जीते हैं। और यही बात बाइबल के भजन 37:29 में बतायी गयी है, जहाँ लिखा है: “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।”

इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारा सिरजनहार चाहता है कि हम 70 या 80 साल तक ही नहीं, बल्कि हमेशा के लिए कामयाब रहें! इसलिए यही समय है कि आप अपने सिरजनहार के बारे में सीखें। यीशु ने कहा: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्‍ना 17:3) जैसे-जैसे आप यह ज्ञान हासिल करेंगे और उसे अमल में लाएँगे, आप पाएँगे कि यह बात सोलह आने सच है: ‘प्रभु यहोवा की आशीष से मनुष्य धनवान बनता है और इसके साथ प्रभु उसको दुःख नहीं देता।’—नीतिवचन 10:22, नयी हिन्दी बाइबिल। (g 11/08)

[फुटनोट]

^ मसीही यूनानी शास्त्र या ‘नए नियम’ में, जिन आयतों में शब्द “प्रेम” आता है, उनमें से ज़्यादातर आयतों में “प्रेम” यूनानी शब्द अघापि का अनुवाद है। अघापि प्यार दिखाने का चुनाव, एक इंसान अपनी मरज़ी से करता है। वह समझता है कि उसे दूसरों से प्यार इसलिए करना चाहिए, क्योंकि यह अच्छा व्यवहार माना जाता है, यह उसका फर्ज़ है और ऐसा करना बिलकुल मुनासिब है। लेकिन ऐसा नहीं कि यह प्यार सिर्फ दिमाग से किया जाता है, इसमें स्नेह और गहरी भावनाएँ भी शामिल होती हैं।—1 पतरस 1:22.

[पेज 7 पर बक्स]

कामयाबी पाने के कुछ और सिद्धांत

परमेश्‍वर का भय मानिए। “यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है।”—नीतिवचन 9:10.

सोच-समझकर दोस्त बनाइए। “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।”—नीतिवचन 13:20.

खाने-पीने के मामले में संयम बरतिए। “पियक्कड़ और पेटू तो कंगाल हो जाएंगे।”—नीतिवचन 23:21, NHT.

बदला लेने से दूर रहिए। “बुराई के बदले किसी से बुराई न करो।”—रोमियों 12:17.

मेहनती बनिए। “यदि कोई काम करना न चाहे, तो खाने भी न पाए।”—2 थिस्सलुनीकियों 3:10.

सुनहरा नियम लागू कीजिए। “जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।”—मत्ती 7:12.

ज़बान पर काबू रखिए। “जो कोई जीवन की इच्छा रखता है, और अच्छे दिन देखना चाहता है, वह अपनी जीभ को बुराई से . . . रोके।”—1 पतरस 3:10.

[पेज 8 पर बक्स/तसवीर]

प्यार नाम की संजीवनी

एक डॉक्टर और लेखक, डीन ऑरनिश लिखते हैं: “हम बीमार हों या ठीक, उदास हों या खुश, हमें दर्द हो या हमारा दर्द मिट जाए, यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि क्या हम पर प्यार और दोस्ती का साया है। अगर कोई ऐसी दवा बन जाए जो प्यार के जैसा असर करे, तो देश का हर डॉक्टर अपने मरीज़ों को वही दवा लिखकर देगा। अगर कोई डॉक्टर वह दवा न लिखकर दे, तो वह अपने फर्ज़ से मुकर रहा होगा।”

[पेज 9 पर बक्स/तसवीरें]

नाकामी से कामयाबी का सफर

मीलांको, बाल्कन प्रायद्वीप के एक देश का रहनेवाला है। जब उसके देश में युद्ध छिड़ा, तो वह फौज में भर्ती हो गया। उसने जिस दिलेरी के साथ लड़ाई की, वह देखकर लोग उसे ‘रैम्बो’ पुकारने लगे। रैम्बो एक मार-धाड़वाली फिल्म में हीरो का नाम है। मगर कुछ समय बाद, मीलांको ने जब फौज में भ्रष्टाचार और छल-कपट देखा, तो फौज पर से उसका विश्‍वास उठ गया। वह लिखता है: “इस वजह से मुझे कई बुरी आदतें लग गयीं। मैं शराब पीने लगा, ड्रग्स लेने लगा, जुआ खेलने लगा और बदचलनी करने लगा। मैं निराशा और उदासी के भँवर में डूबता जा रहा था। मैं इससे बाहर निकलना चाहता था, पर कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।”

ज़िंदगी के उस नाज़ुक दौर में मीलांको ने बाइबल पढ़नी शुरू कर दी। फिर एक दिन वह अपने एक रिश्‍तेदार से मिलने गया। वहाँ उसने प्रहरीदुर्ग नाम की एक पत्रिका देखी, जिसे यहोवा के साक्षियों ने छापा था। वह पत्रिका पढ़कर उसे इतना अच्छा लगा कि वह जल्द ही साक्षियों से बाइबल के बारे में सीखने लगा। बाइबल की सच्चाई की बदौलत वह खुशी और सच्ची कामयाबी की राह पर चलने लगा। मीलांको कहता है: “इस सच्चाई से मुझमें नया जोश भर आया। मैनें अपनी तमाम बुरी आदतें छोड़ दीं और बिलकुल नया इंसान बन गया। इसके बाद, मैं बपतिस्मा लेकर यहोवा का साक्षी बन गया। अब लोग मुझे ‘रैम्बो’ के बजाय, मेरे घर के नाम ‘ज़ैक’ से पुकारने लगे, जिसका मतलब है कोमल स्वभाव का इंसान। और मैं सचमुच ऐसा ही बन गया हूँ।”